रूह ए हमाम की तलबगार हूं
चश्म के हिस्से तो अश़्क रोज़ आये हैं-
सपनों से गुजारिश है..!!
यूँ अपने बन मत आया करो..!!
गर आते हो तो..!!
अश़्क भी साथ ले जाया करो..!!-
ना आवाज ना कोई धमाका..!!
बस नाखून नफरतों के लंबे यूँ होते गए ..!!
मासूम सा इश़्क लहूलुहान सा..!!
मोहब्बत के अश़कों में ग़मगीन हुआ..!!
यूँ टूटकर बिखरता चला गया..!!-
इश़्क-ए-ख़ुमार ..!!
यूँ सितम ना ढ़ा..!!
हवाओं के भी अश्क..!!
ओंस सी बूंदों से ..!!
जमीं को रुलाने लगे हैं..!!-
बहुत आहिस्ते से मूंँद लेती हूंँ पलकों को..
कहीं कुछ सपने बह ना जाए अश़्कों के साथ..!!-
गर्म हवाओं में भी..!!
बसती हैं वो यादें ...!!
कि' रह रह कर अश़्क ..!!
सुखाती हैं वो यादें ..!!
इस कदर मेरा हाल चाल पूछने..!!
अक्सर चली आती हैं वो यादें...!!-
ऐ! हवाओ ..!!
सागर से होकर मत आना ..!!
सूरज से होकर आना..!!
शुष्क होकर आना ..!!
अश्क बहुत हैं राहों में..!!
उनसे मिलकर आना...!!
रखना तुम भी ताकत..!!
यूँ थाम के रखना तुम भी कलेजा..!!
यूँ ना बहाना कोई बनाना ..!!
वजन बहुत है इन अश्कों का ..!!
संग तू अश्कों में ना बह जाना...!!
खोए हैं लाल उन परिवारों को..!!
एक हिम्मत सी देकर आना ..!!
मुझसे अब देखा नहीं जाता..!!
दुनिया उजड़ी है उनकी सहा नहीं जाता..!!
बस कलम मेरी रो लेती है..!!
तबाही-ए-मंज़र अब सहा नहीं जाता..!!-
आज विदा हो मुझ से वो जा रहे हैं...!!
मेरे अश्कों को भी साथ बहा ले जा रहे हैं..!!-
खामोंशिया शाम की ..!!
बयां कहां हो पाई..!!
छुपाए कुछ अश़्क यूँ..!!
बिना कुछ कहे ही..!!
भरे मन विदा सी हो चली..!!-