अश्कों के समुंदर में नहाए हुए हैं,
लाख सितम दिल पर खाए हुए हैं,
नम आंखों की मासूमियत भी चीख पड़ी,
नमक इश्क़ का जो ज़ख़्म पर लगाए हुए हैं....
शाम का शामियाना फिका हो गया,
महफ़िल भी अब राज़ आती नहीं है,
कुछ बाते दिल की अब इस दिल मै रहे तो बात है,
मुहब्बत भी कुछ लोगो ने बाजारू कर दिया....
अश्कों के बारे में पूछा जो उसने हम भी लिखने बैठ गए,
कुछ घाव है जो छिपाए हुए है,
और कुछ अश्को मे पिरोना सीख गए...
अजनबी सा रिश्ता हो गया
अजनबी एहसास है,
ना कोई बंदिश ना कोई शिकवा,
और ना ही इस रिश्ते के लिए अल्फ़ाज़ है....
रब करे जो कभी कबूल हो दुआ हमारी,
तू बस खुश रखना उसे जो हमारे ज़िन्दगी में ख़ास है...!!
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