न मिलता है वो गीता में न वो क़ुरआन से ख़ुश है,
न आया वो भजन सुनकर न वो अज़ान से ख़ुश है,
उसे काफ़िर भी प्यारा है, उसे मोमिन भी प्यारा है,
वो मालिक दो जहानों का भले इंसान से ख़ुश है।
तेरी पूजा-नमाज़ों की नहीं दरकार कुछ उसको,
उसे दिखता है दिल तेरा, तेरे ईमान से ख़ुश है।
तू बन हाफ़िज़ या हो पंडित कहाँ ये ग़र्ज़ है उसकी,
वो मासूमों का है दिलबर , दिले-नादान से ख़ुश है।
वो चिड़ियों को खिलाता है, वो रिंदों को पिलाता है,
वो सबसे प्यार करता है, वो हर इक जान से ख़ुश है।-
जपा है जब से अल्लाह-राम
शेष विशेष नहीं कुछ द्वेष
शेष विशेष नहीं अब काम।
हज़रत - मरियम - सीताराम
परहित करना इक संदेश
निर्धन कुटिया मक्का-धाम।
ईश्वर - अल्लाह इक का नाम
मंदिर - मस्जिद कहाँ कलेश
सब उसकी है धरा तमाम।
नानक, ईसा, राधा - श्याम
कब था इनको क्रोधावेश
गंगा करूणामय अविराम।-
मेरे श्री राम भी परेशान है उनके अल्लाह भी हैरान है
आज न जाने उनके सारे भक्त कहाँ गुमनाम है..
ना हमें मंदिर चाहिए
ना किसी को मस्ज़िद चाहिए..
जो बचा ले उन्हें मौत से
बस ऐसा कोई चमत्कार चाहिए..
जो बताते थे कभी ख़ुद को ख़ुदा
आज वो कुछ पलों के मेहमान है..
कहते थे कभी जो हमारी बहुत पहचान है
देखो वो पल पल ज़िन्दगी के कितने मोहताज़ है..
मेरे श्री राम भी परेशान है उनके अल्लाह भी हैरान है
आज न जाने उनके सारे भक्त कहाँ गुमनाम है..-
मुझे इस दिल के शीशे में तेरा ईश्वर दिखा अल्लाह
नहीं कुछ फ़र्क़ दोनों में तो क्यों तकरार की जाए!-
रात दिन नफ़रतों की ये बातें,
शब-सहर दुश्मनी के ये चर्चे,
धर्म की कौन-सी किताबों में,
ये लिखा है जो हम न पढ़ पाये।
ये तो अच्छा है कमसमझ हैं हम,
वर्ना औरों-से हो गए होते।
कौन अल्लाह को मानता है अब!
कौन है भक्त राम का दिल से!
अपने मालिक के नाम पर तुमने,
क्या गुनाह जो न किया तुमने!
जो ख़ुदा आसमाँ में बसता था,
कितना नीचे गिरा दिया तुमने!-
तेरे घर के दरख़्तों पे जो पंछी गाये अच्छा है,
कोई जुगनू कभी उड़कर तेरे पास आये अच्छा है,
ख़ुदा न आएगा चलकर तेरे दर पे ये तो है सच,
मगर घर में कोई नन्ही-सी बिल्ली आये अच्छा है।
तू रब के जिस करिश्मे को मज़हब में ढूँढने निकला,
करिश्मा वो तुझे क़ुदरत में ही दिख जाये अच्छा है।
जिसे मंदिर, जिसे मस्जिद, जिसे गिरजे में खोजा है,
कहीं ख़ुद में ही तुझको वो ख़ुदा मिल जाये अच्छा है।
जो दरवेशों-मलंगों के, वली के दिल में रहता था,
वही मौला किसी आलिम के दिल में आये अच्छा है।-
इन बकरियों ने क्या गुनाह किया है
जिसे हर बकरी ईद पर इसे मार दिया जाता है?
😓😓-
मैं गंगा जितना तरल भी हूँ।
मैं असवत जैसा दृढ़ भी हूँ।
तेरी श्वाँस - श्वाँस का दाता हूँ,
तेरी श्वाँस-श्वाँस का ऋण भी हूँ।
मैं ही सूफ़ी का अल्लाह हूँ,
किसी मीरा का मैं कृष्ण भी हूँ।
एकान्त हूँ मैं जब शान्त है तू,
जब भीड़ में है मैं भीड़ भी हूँ।
किसी पीर-वली की कुटिया हूँ,
नन्ही चिड़िया का नीड़ भी हूँ।
मैं प्रीतम का आलिंगन हूँ,
मैं प्रेम-विरह की पीड़ भी हूँ।
सब ब्रह्माण्ड मुझी से है,
मैं स्वर्ण भी हूँ, मैं तृण भी हूँ।-
मेरा मेरी सोच से झगड़ा हुआ है,
मेरी सोच ने अभी तक उसे पकड़ा हुआ है,
मैं भगवान को भी मानता हूँ
और अल्लाह को भी मानता हूँ,
फिर भी लोग कहते हैं
कि लड़का बिगड़ा हुआ है।
" हिमांशु बंजारे "-