ना बाच सका कोई
मेरी किस्मत का लेखा
अब के जो गयी काशी
तो वापस ना आऊंगी
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लगातार हो रहे असफलताओं से
निराश नहीं होना चाहिए. कभी कभी
गुच्छे की आखिरी
चाबी भी ताला
खोल देती है.
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अपना अपना ही होता-
अपनों से जो प्रेम न करता उसकी ख़ैर नहीं,
हम प्रेमी प्रेम करने वाले कोई ग़ैर नहीं,
वक़्त जरूरत पर तो अपने ही आते हैं काम,
उनसे प्यार करो तुम समझो न उन्हें गुलाम,
जब तक धन दौलत है कर ले तू अभिमान,
ग़ैर कभी न मदद को आये भुगतोगे अंज़ाम,
हम तो इस संसार में रखते किसी से बैर नहीं,
अपनों से जो प्रेम न करता उसकी ख़ैर नहीं,
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"क्या हुआ?" सवाल के सामने जब "कुछ नहीं",
जवाब मिले, फिर भी वो "कुछ नहीं" में "कुछ" छिपा भांप ले, वही हमारा अपना होता है।-
दर्द जब हद से गुजर जाता हैं न
तो इंसान चीखता, चिल्लाता या
रोता नहीं है ,बस वो शांत हो जाता है,
छोटी से छोटी शिक़ायत करने वाला
वो शक्स अब अकेले तन्हा
रहना सीख जाता है कर लेता है
खुदको सबसे दूर, और
यूं ही तन्हाइयों का
अपना एक अलग ही
आशियाना बना लेता है,,,-