Shriprakash Shukla कलमकार   (प्रकाश)
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Joined 28 May 2021


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Joined 28 May 2021

परछाईं का पीछा करते करते सुबह से हो गई शाम,
हम तो उसको पकड़ न पाये बन गये उसके गुलाम,

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तुम्हें अगर आंखों में चुभ रहा है ग़म,
तुम उसे ग़र करना ही चाहते हो कम,
समन्दर किनारे चलती शीतल हवाएं,
वहीं बैठकर धीरे धीरे पीते रहो रम,

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दो लफ़्ज़ों की परवाह कोई भी नहीं करता है यहां,
कहने में देर न लगे तेरा जैसा यार मिले न इस जहां,

दो दिन की यारी और बाद में यारी बन जाए बीमारी,
आजकल करें किसी से यारी तो रखें बड़ी होशियारी,

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कभी तो तुम मेरे दिल की फ़रियाद सुनो,
मेरे हमसफ़र बन ज़िन्दगी के ख़्वाब चुनो,
ज़िन्दगी यूं ही गुज़र जायेगी लम्हा लम्हा,
वक़्त बहुत कम है अपने मन की बात सुनो,

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स्कूल की याद मत पूछो यार बताते लाज़ आवै,
बीजगणित समझ में न आवै टीचर मुर्गा बनावै,
जब आवै बीजगणित को घंटा मन से ये मनावैं,
भगवान आज गुरु जी मेरे क्लास में ही न आवैं,

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मेरी यादों को निकाल कर
तूने मेरा दिल ही दिया तोड़,
पहले तो तूने की मोहब्बत
अब क्यों अकेला दिया छोड़,

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तुम दूर रहती मेरा मन हो जाता उदास दिल की टूट जाती आस,
नज़रों के सामने रहती तब भी कहां बुझे मेरे इन नैनों की प्यास,

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सुरमई जब शाम हुई तब तुम्हें मेरी याद आई,
तुम दिन भर लेती रहीं अंगड़ाई तब नहीं याद आई,
मेरी हर सांस तेरा ही नाम जपती है आए न तन्हाई,
तेरे ही इंतज़ार में बैठे रहे वहीं जहां तू कल हो आई,

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कम नहीं जहां में प्यार फिर भी ऐ दिल तू है बेकरार,
चिंता छोड़ दे कहीं न कहीं तो होगा तेरा भी तलबगार,

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तुम्हें देखकर लगता है जैसे मेरा दिल हो गया बेकरार,
मौसम है आशियाना आजा जी भर करूं तुझसे प्यार,
तेरी मुस्कराहट देख चैन नहीं आए कैसे करूं इंतज़ार,
वफ़ा हम निभायेंगे मेरी पाक मोहब्बत कर ले इकरार,

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