Shriprakash Shukla कलमकार   (प्रकाश)
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Joined 28 May 2021


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रिश्ता किसी से बनाओ तो दिल से बनाओ,
स्वार्थवश कभी किसी से दिल मत लगाओ,
रिश्ता बनाके रिश्ता तोड़के दिल न दुखाओ,

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ना चाहते हुए भी तुमसे
प्यार करने को मेरा दिल करता है,
क्या खूबसूरती पाई है तुमने
सच बता तुम पर कितनों का दिल मरता है,

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कभी कभी ना चाहते हुए भी ग़म भुलाना पड़ता है,
जब भी तुम मेरे सामने होते तो मुस्कुराना पड़ता है,

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तुम कहाँ खो गए हो दिल दरबदर हो गया है,
लगता मोहब्बत का मुझको असर हो गया है,

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तुम अब शिकवा नहीं करते जब से अपना गुलशन हुआ गुलज़ार,
फ़ुर्सत ही नहीं मिलती तुझे चे पों में अब तो तेरे बच्चे हो गये चार,

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दिल भटकता है बहुत, पर क्या बताएं यार कहीं किसी से लगता नहीं,
उससे अधिक किसी की चाह नहीं तभी तो हुश्न देखके भी डिगता नहीं,

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तेरी ऊंगली पकड़ी है मोहब्बत में अब तुम मुझे राह दिखाना,
अपना समझ के तुम मेरे संग ज़िन्दगी भर अपनापन निभाना,

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सब कुछ उम्र का तक़ाज़ा अब दिल ज़िद करता ज्यादा,
इस उम्र में सुकून कहाँ पर ओढ़ रखा सुकून का लबादा,

किससे कहें दिल की बात अब तो बस बची रहे मर्यादा,
बच्चे देख खुशी हो जब तितुला के कहें नाना बाबा दादा,

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बुराई पर अच्छाई को जीत से कोई नहीं रोक पाता है,
जब अहंकार जल जाता है तब उर में विवेक आता है,

दशेन्द्रियों पे जब भी इंसान का आधिपत्य हो जाता है,
रावण रूपी दशानन उस इंसान को देखके घबराता है,

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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी ने दशानन रूपी रावण का संहार कर आज के दिन विजय प्राप्त की थी।

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