Shriprakash Shukla कलमकार   (प्रकाश)
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Joined 28 May 2021


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ज़िन्दगी का क्या भरोसा किस दिन धड़कन रुक जाये,
जब तक है ज़िन्दगी इसका भरपूर फायदा लिया जाये,
दु:ख सुख तो आये जाये ज़िंदगी कोई दुबारा नहीं पाये,

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कर्म का ध्यान कर ही धार्मिक कर्म कर,
धर्म के कर्म ही इंसान का लें अज्ञान हर,

श्रम से न डर जब तक जीवन श्रम कर,
सुख से जीना है तो कर्मठ बन संघर्ष कर,

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कन्हैया कन्हैया मुझे अपनी मुरली की तान सुना दे,
तुझसे हो जाए प्रीत ऐसी मेरे तनमन में आग लगा दे,

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किस उधेड़बुन है मन कुछ बोलो तो जानेमन,
अब तो शाम होने आई क्यों उदास है तेरा मन,

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ओ मेरे कान्हा आज तो पड़ेगा तुम्हें घर मेरे आना,
देश मनायेगा जन्म दिवस तेरा सबसे प्रीत लगाना,

जन्माष्टमी का त्यौहार सब लोग खुशी से मनाना,
उर में रख आनंद करो सतसंग यही तो संग जाना,

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ये
तिरंगा
मेरे देश की
है पहचान हमारी जान,
तिरंगा स्वतंत्रता की है शान,

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तेरे हाथ में और का गुलाब होता ही नहीं,

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बाद में पता चला कि आज तारीख चौदह है,
तूने पन्द्रह का वादा किया हम राह देखते रहे,

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नीली अखियों में झांका तो हमें आंखों को पढ़ना आ गया है,
मैं शायर नहीं इश्क़ करने से थोड़ा थोड़ा लिखना आ गया है,

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तू नहीं तेरी याद सही,
ख़ुदा से मेरी फ़रियाद यही,
जनम जनम तेरा ही प्यार मिले,
दूसरा न कोई अब मुझे यार मिले,

अब तू नहीं तेरी याद सही,
प्रेम इतना किया कोई कर न पाए मही,
तेरी मेरी मोहब्बत देख देख ये दुनिया जली,
मैं तुम्हें ढूँढता तुम मुझे ढूँढते आसपास की गली,

अब तू नहीं तेरी याद सही,
तेरी यादों में मेरी अखियों से जलधार बही,
दु:ख मुझे इतना तूने क्यों कभी कोई किये न गिले,
तू तो सदा हंसती ही रही जब भी हम तुमसे मिले,

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