बहुत पुरानी बात नहीं है। एक गाँव के बाहर एक मंदिर बनाया गया। छोटा सा, मगर सुंदर। जो भी देखता अंदर जरूर जाता। एक अलग सी शांति होती थी अंदर। मंदिर हमेशा खुला रहता। लोग कभी भी आ सकते थे। लोगों की मंदिर के प्रति श्रद्धा बढ़ती गयी। वे अपने मित्रों रिश्तेदारों और परिचितों को मंदिर के बारे में बताने लगे और धीरे धीरे श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने लगी। लोग आते अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते और चले जाते।
मंदिर में कोई मूर्ति नहीं थी, बस एक बाबा हुआ करते थे। वो श्रद्धालुओं से तरह तरह के फूल मंगाया करते। पहले मंदिर में कम भीड़ हुआ करती थी। लोगों का आपस मे परिचय होने लगा। वे आपस में सुख दुख बाँटने लगे। बाबा के सानिध्य में ज्यादा समय बिताने लगे। अब मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ गयी। लोग दूर दूर से दर्शन को आने लगे। मंदिर की तस्वीर से अपने अपने घर सजाने लगे। भजन संध्या, जागरण का आयोजन होने लगा। कुछ दानदाताओं ने मंदिर के दरवाजे पर चाँदी मढ़वा दिए, गुम्बद पर सोने का पानी चढ़ा दिया। अब भीड़ बढ़ने लगी थी। आज हमारे शहर में भी भजन का आयोजन किया गया है। और हम सब आतुर हैं आप सभी के भजन सुनने को। यौरकोट मंदिर में आप सभी का स्वागत है।
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