अगर तू तलवार होता
काट डालता शीश तू शत्रु का
पर तुझको ना किंचित भी दुख होता।
जख्म देता कितने भी गहरे
और शत्रु जब दुख से रोता,
तनिक भी ना तुझे बुरा लगता नाही तू कभी लज्जित होता।
पर याद रख तू कोई तलवार नही
जख्म देकर खुश ही रहना,इतना भी आसान नही।
माना तेरा जीवन है रणभूमि
पर समय कि है अब पुकार यही
पुनःविचार कर तू फिर से
क्षमादान कर दे तू फिर से
है मानवता कि एक मांग यही।
है मानवता का एक सार यही।।-
एक चिता थी सामने,जला जो वो मेरा आक्रोश था।
क्षत्रियता निभा कर आज,फिर से मैं खामोश था।।-
समझना मुश्किल है लेकिन बहुत आसान सी नीति हूँ
हाँ मैं राजनीति हूँ।
चंद लोगो कि वजह से ,हर वक़्त जहर पीती हूँ
हाँ मैं राजनीति हूँ।
जो समय के साथ बदलता रहे वही तो रीति हूँ
हाँ मैं राजनीति हूँ।
सब के विचारों से सीख कर जीती हूँ
हाँ मैं राजनीति हूँ।
आज सोच कर देखो तुम्हारी भी आपबीती हूँ
हाँ मैं राजनीति हूँ।।-
पास उन्हें बुलाना क्यों।
फिर उनसे एक दिन दूर होकर
दूरी का ऐहसास दिलाना क्यों।
वो दूर हैं तो क्या हुआ
उस दूरी से घबराना क्यों।
उनकी यादों में उलझ कर
वर्तमान को झुठलाना क्यों।
समय है बहुमूल्य जानकर भी
इतिहास दुहराने में उसको गवाना क्यों।।
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जो छोटी - छोटी बातें भी बताया करती थी तुझको,
वो अब जिंदगी के अहम किस्सो को भी छुपाने लगी।
हाँ सच मे जिंदगी मुस्कुराने लगी।।
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एक इकरार था , एक इजहार है
वो इकबाल था, ये इल्जाम है।
एक इतिहास था,एक इंकलाब है
वो इनाम था , ये इनकार है।।
एक इतमीनान था , एक इम्तिहान है
वो इंसाफ था,ये इंतजार है।
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जब से मुझे तेरी चिठ्ठियाँ नहीं मिलीं
तब से बागों में तितलियाँ नहीं मिलीं
लाख नाम आया तेरा मेरी हर दुआ में
मगर खुदा को मेरी अर्जियाँ नहीं मिलीं
अंदर की उदासी चली भी जाती शायद
पर हवा को खुली खिड़कियाँ नहीं मिलीं
रहे राह से मंज़िल तक धूप ही धूप में
राहों में कहीं भी बदलियाँ नहीं मिलीं
इस बार इंतज़ार हर बार से ज़्यादा था
लेकिन दिसंबर को सर्दियाँ नहीं मिलीं
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अनहोनी कुछ होने को है...
हाथो मै अब ये हालत नहीं है,
खुशी तो बहोत है ,पर देखु मै
पीछे कही 'गम' बारात तो नहीं..
जीने के लिए जींदगी पास है,
पर देखु मे पीछे कही 'मौत' ने
दी आवाज तो नहीं .....
हर वक्त गुजर जाता हैं ईस
डर मैं....
अनहोनी कुछ होने को है......-