(कुछ न होगा तो तज़ुर्बा तो होगा)
हे पथिक! क्यूँ विचार करता है तू जीवन में आगे क्या होगा, अरे पगले कुछ ना होगा तो तज़ुर्बा तो होगा।
माना कि तेरी मंज़िल है लोहे की जंजीरोें में, पर तू परेशान क्युं होता है, तेरे हौसले की तपन से तो एक दिन वो लोहा भी पिघलेगा। माना कि आज पुनः गिरकर बिखरा है तू टूटे काँच के भाँति, परंतु कल तो सिमटकर रणभूमि में पुनः गर्ज़न देगा ही क्षृधित सिंह की भाँति।
सपनो की गहराई समझ, अपने अन्तर्मन की अच्छाई समझ, पुनः एक बार स्वयं से युद्ध करके तो देख, करता रह कर्म परंतु इस क्षण में एक बारभोले को याद करके तो देख। ये तनिक भी न विचार कर की चार लोग क्या कहेंगे, अरे! वो तो चार लोग हैं पगले, अधिक से अधिक ;राम नाम सत्य ही कहेंगे...
फिर क्यूँ विचार करता है तू पथिक! जीवन में आगे क्या होगा? अरे पगले! कुछ ना होगा तो तज़ुर्बा तो होगा।।
-चित्रा द्विवेदी-
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