चित्रा द्विवेदी   (महादेव🙏)
4.1k Followers · 3.0k Following

read more
Joined 26 May 2021


read more
Joined 26 May 2021

" मैं इतनी सुंदर तो नही,पर क्या करूं"

मैं वेदिका,तू आशनी
मैं हासिनी तू चाशनी
तू करिश्मा, मैं आत्मिका
तू भौतिक अप्सरा और मैं आध्यात्मिक मायरा।।
तेरा तर्ज़ कैरवि मेरा तर्ज़ उज्जवला
फतह की डगर पर अंतस् कुछ यूं चला
मानो तेरा सम्मन फाल्गुनी,मेरा सम्मन ओजस्विनी
मेघों के वन में हम दोनों ने यही राह चुनी
तू भौतिक अप्सरा बनी और मैं आध्यात्मिक मायरा बनी।।
- चित्रा द्विवेदी-

-



कोरोना पर वार युवा योद्धा हैं तैयार
काॅंटों में राह बनाते हैं,यह वीर पराक्रमी निर्भय होकर मृत्यु को गले लगाते हैं,
धैर्य वा आत्मबल से विपत्ति में लड़ना सिखाते हैं,यह वीर निर्भय होकर आगे बढ़ना सिखाते हैं।।
अंतस् में ऊंचे भाव संग धीरज लेकर चलना सिखाते हैं,यह वीर विपत्ति में जन के उद्धारक बन मरते हुए को जीना सिखाते हैं।
चमक सूरज की नही अपितु इनके किरदार की हो जाती है,जब ये अदम्य साहस से विपत्ति में जन के उद्धारक बन जाते हैं।
यह बोस आजाद ना होकर भी वीर पराक्रमी कहलाते हैं,यह वीर हिंदू मुस्लिम नही अपितु सिर्फ इंसानियत धर्म निभाते हैं।
आँखों में प्यार भर हरियाली का उद्गार कर,यह निडर होकर चलना सिखाते हैं,साहस के मूसलाधार प्रहारों से यह विपत्ति रूपी पतझड़ को दूर करना सिखाते हैं,तभी तो यह वीर, कोई और नहीं अपितु पराक्रमी युवा योद्धा कहलाते हैं।।
-चित्रा द्विवेदी-

-



(कुछ न होगा तो तज़ुर्बा तो होगा)
हे पथिक! क्यूँ विचार करता है तू जीवन में आगे क्या होगा, अरे पगले कुछ ना होगा तो तज़ुर्बा तो होगा।
माना कि तेरी मंज़िल है लोहे की जंजीरोें में, पर तू परेशान क्युं होता है, तेरे हौसले की तपन से तो एक दिन वो लोहा भी पिघलेगा। माना कि आज पुनः गिरकर बिखरा है तू टूटे काँच के भाँति, परंतु कल तो सिमटकर रणभूमि में पुनः गर्ज़न देगा ही क्षृधित सिंह की भाँति।
सपनो की गहराई समझ, अपने अन्तर्मन की अच्छाई समझ, पुनः एक बार स्वयं से युद्ध करके तो देख, करता रह कर्म परंतु इस क्षण में एक बारभोले को याद करके तो देख। ये तनिक भी न विचार कर की चार लोग क्या कहेंगे, अरे! वो तो चार लोग हैं पगले, अधिक से अधिक ;राम नाम सत्य ही कहेंगे...
फिर क्यूँ विचार करता है तू पथिक! जीवन में आगे क्या होगा? अरे पगले! कुछ ना होगा तो तज़ुर्बा तो होगा।।
-चित्रा द्विवेदी-

-



कुछ लोग बोलते ललित और होते असुर हैं,
ये कलयुग का दस्तूर है मित्रों,
यहाँ खिलते ढोंगी और बुझते धीर प्रफुल्ल हैं।।

चित्रा द्विवेदी-

-



काश! कुछ लोग अपने मुख से निकले कड़वे शब्दों को वापस भी पी सकते जिससे उसके कड़वे होने का अच्छा स्वाद उन्हें भी मिल पाता।
काश!
🤫🤫
-चित्रा द्विवेदी-

-



"ओ प्यारे आम,बड़ा महंगा है तेरा दाम, फिरभी बिकता है तू सरेयाम,कुछ ऐसा ही है आम इंसान।।

-



कोई बताएगा क्या ये भविष्य की सारी चिंताएं,पढ़ने बैठने पर ही क्यों आती हैं,उसके पूर्व क्यों नहीं आती🙂
- चित्रा द्विवेदी-

-



ख़ुद में ढूंढ़ रही खुद को
बस पाकर ही है शांत होना।
स्वयं में कुंठित, हिय में विचलन
जीवन में ये कैसी अड़चन।
कुंठन ने अंतस् को यूं तोड़ा,
मानो आंखें भेद रही शैतानी पंजों सह
हिय का कोना-कोना।
बेशक आज पुनः हारी हूं स्वयं से,
पर नही जानती हूं मैं रोना।
ख़ुद में ढूंढ़ रही खुद को
बस पाकर ही है शांत होना।।
- चित्रा द्विवेदी-

-


Seems चित्रा द्विवेदी has not written any more Quotes.

Explore More Writers