जब तु नाराज था |
तुझे खुद पे बड़ा नाज़ था |
जब छोड़ा बीच रास्ते, तेरी याद में कितने तड़पे हम |
तेरी इस मोहब्बत की चाह में, दर दर ऐसे भटके हम |
किसी और पे भी, हम मर लेते |
तेरे इश्क़ को, रुसवा कर लेते |
इश्क़ हमारा सच्चा था , नापाक उसे क्यों करते हम |
तेरी इस मोहब्बत की चाह में, दर दर ऐसे भटके हम |
अब इन नज़रों में वो नज़र कहाँ, जो और कहीं पे जा बैठे|
ये नज़र कहीं ना टिकी कभी, जब तुझपे नज़र हम टिका बैठे|
तेरा इश्क़ हमारा अपना था, अब खुद से दगा क्यों करते हम|
तेरी इस मोहब्बत की चाह में, दर दर ऐसे भटके हम |
अब ले जाए भी ये नज़र कहाँ, बस खुद पे टिकी ये रहती है |
कुछ बेहतर करने की खातिर, मंजिल की राहें चुनती है |
अब खोना नहीं इस मंज़िल को, बस खुद पे नज़र अब रखते हम |
तेरी इस मोहब्बत की चाह में, दर दर ऐसे भटके हम |
Pritam Singh Yadav
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