किन्नर :- " एक सिमटती पहचान "
न नर हुँ न मादा , इस ब्रह्मांड की अनुठी संरचना हुँ ..
जज्बातों से लिपटे हैं दोनों प्राण मेरे , ईश्वर की इच्छा से पनपी रचना हूँ ..
सिमट रही है मेरी पहचान , गली मोहल्लों के चक्कर में ..
थक पड़े हैं ये इबादत के हाथ , दुखती तालियों के टक्कर में ..
अपनों से हुए पराया हम , इस समाज के कड़वे सवालों से ..
आखिर खुद के अस्तित्व से लड़ रहे हम , इस जहां के बनाए मसलों से ..
सनजो रखी है कुछ अनकही ख्वाहिशें , इस बिलखते मन के खाने में ..
ना चाहते हुए भी बिक रहे हैं ये तन , गुमनाम कोठियों के तहखाने में ..
झुकी रहती है हमारी निगाहें , समाज के हीन नजरिए से ..
चूर हो रहे हैं अरमानों में लिपटे आत्मसम्मान , परिवेश के तुझ रवैये से ..
मिल गई हमें संविधानिक सौगात , तीसरे दर्जे के रूप में ..
आखिर कब मिलेगी बुनियादी अधिकार , भारतीय नागरिक के स्वरूप में ..
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What you're? A boy or a girl?
They laughed and taunted.
a 'human',
that transgender smiled and said.-
हाँ मैं हिजड़ा हूँ
तो क्या नहीं है मुझे आवश्यकता माता-पिता की?
तो क्यों नहीं उनने मेरी अब तक हालत पता की?
क्या मेरे नहीं होते कोई अरमान, नहीं होता हृदय?
मुझे छोड़ देते मरने हेतु अकेला, लगता नहीं भय?
होता विरोध किसी लड़की का होता जब बलात्कार
जब करते मेरा नहीं निकलती किसी की भी चीत्कार
क्या नहीं ज़रूरत पढ़ाई - लिखाई, रोज़ी - रोटी की?
नहीं ज़रूरत नाते - रिश्तेदारों और बेटा - बेटी की?
समाज ने क्या सोच बस मेरे पैरों में घुँघरू बाँध दिए?
एक जैविक कारण से ही इंसान से हटकर मान लिए।
हिजड़ा, छक्का, गुड़, मामू, सिर्फ़ उपहास का पात्र !
जीवन जीने का अधिकार नहीं, काटना है इसे मात्र।
कैसा घोर अन्याय सहा जन्म से लेकर मृत्यु तक मैंने।
मरणोपरांत भी सबसे सिर्फ़ जूते - चप्पल खाए मैंने।
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It was all over the NewsPaper Headlines.
Young Successfull Buisness Tycoon Getting Married.
His family was Speechless,Nervous,Shamed.
He was Cool,Calm and Knew What He Was Doing.
The D Day Arrived,and the Entire Local Media was at the Register Office.
All Focus was on the Bride as soon as she got down from the Auto and walked in.
They went inside,Exchanged Flowers,and went ahead to Sign the Register.
Her Name Read "Shailaja Alias Satish/Transgender".-
हम सबके लिए करते हैं
फिर भी हमें तिरस्कृत होकर ही
जीना पड़ता है
कामना हम सबके लिए करते हैं
फिर लोग कामुक कल्पनाओं की
नज़र से ही देखते हैं, है हम भी एक इंसान
फिर लोग हमारे वाजूद को कलंक के भाव में
धकेले जातें हैं।कहते हैं हमको
अर्द्धनारीश्वर का एक रूप
फिर जगत में हमें कोई इंसान नहीं समझता।
Transgender 🌈🌈🌈-
हम पहले भी ऐसे तिरस्कार के साथ जी रहे थे
और आज भी हम तिरस्कार का भार उठा रहे हैं
समाज हमें पहले भी नहीं समझ पा रहा था और
आज भी समाज हमको समझना नहीं चाहता है
हम पहले भी ट्रान्सजेंडर लोग थे और आज भी ट्रान्सजेंडर
लोग हैं कलंक पहले भी था और आज भी लगा है
दोष तो सिर्फ समाज की सोच का है!
Transgender🌈🌈🌈-
ना वो 'मर्द' है और ना ही पूरी 'औरत' !!
'छक्का' और 'हिजड़ा' जैसे कड़वी शब्द बोलकर,,
छीन लिया जाता है उनकी शोहरत !!-
Dear Heteros!
Why can't you treat them equally?
Where does your humanity & concern gone?
They are also like us with pool of blood & flesh.
Why?
Is that they are much sinner in this world?
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When I demand equality,I am reminded that I am a Transgender...
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