Kalyan Singh   (Kalyan Singh)
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Joined 12 December 2019


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18 OCT 2024 AT 16:30

ख्वाब को हकीकत मान लें वक्त को तु सहेज लें
अभी कुछ नहीं बिगड़ा अपने दिल की मान लें।।

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20 SEP 2024 AT 16:29

"पंखे से लटक रहा था
एक निष्प्राण युवा
एक तरफ चीख पुकार थी
तो दूसरी ओर
पड़ोसी चर्चा कर रहे थे
प्रेम या स्त्री का चक्कर लगता है
कुछ पारिवारिक कलह को
जिम्मेदार मान रहे थे ।
सब को सब नज़र आया
बस उसकी बेरोजगारी को छोड़ कर...!''

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15 AUG 2024 AT 22:22

मैं आजादी की बधाई दूं भी तो किसे दूं..........!
देश तो हमारा आज भी मजहबों में उलझा हुआ है।

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24 JUL 2024 AT 11:39

यहां उलझा हुआ किरदार हुं मैं
लोग मानते हैं कि समझदार हुं मैं
खुद की तलाश में खोया हुआ हुं मैं
ना जाने कैसा तलबगार हुं मैं।।

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24 JUL 2024 AT 11:31

The Last Hug.....!
उसने मेरे कांपते हुए हाथों को अपने हाथ में लेकर कहां
"शान्त हो जाओ,संभालों अपने आपको ''
हम दोनों बस रोते रहे एक दूसरे को देखते हुए।
कुछ देर बाद, उसने फिर कहां ;
"प्लीज़ संभालों अभी मुझे जाना होगा ,उठो!"
यह सुनकर मैं और जोर से चीख कर रोने लगा ।
उसने मुझे शान्त करतें हुए कहा ; "SHhhhhhhhh
प्लीज़ चुप हो जाओ 'कोई सुन लेगा, शान्त हो जाओ।"
मेरे चुप न होने पर उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया।
और इस तरह उसकी शादी से एक रात पहले हमने
एक-दूसरे को आख़री बार गले लगा कर विदाई दी ।।

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1 JUL 2024 AT 19:43

एक उम्मीद में आगाज़ भर देता है
चाह पूरी हों या न हों
लेकिन एक उम्मीद की
किरण तो जरूर देता है।

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1 JUL 2024 AT 19:37

समझौते की भीड़-भाड़ में रिश्ता सबसे टूट गया
इतने घुटने टेके मैंने आखिर में घुटना फूट गया।।

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1 JUL 2024 AT 19:31

जो हमें समेटे लिए हुए हैं
वरना बरसना हम मर्द को
भी आ गया है।।

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1 JUL 2024 AT 19:27

किसी के मन को एकाग्र कर तो किसी के भाव में तब्दील होने की वजह बन जाती है। मनुष्य के मन: चिन्तन का कारण बनती तो इस पर काम करने के लिए मजबूर कर देती है।
किताबों में बसी कहानियां किसी बीते पल को दोहराने का काम करती।

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29 JUN 2024 AT 19:10

ज़माने की मार मैंने खुद में समेटे ली
यहां कोई किसी का नहीं यह बात
मैंने खुद से समझ ली।

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