ता लीम देनी
ही है
तो ,किताबी नहीं
ए ह
सास की दो,
होंठों
से छूट
कर दिल
में, हों जज़्ब
ऐसे ही
अल्फ़ाज़
की दो,
झुकता
हो खैर
मकदम में, जो सर हर
मज़हब
की ही
खातिर,
इन्सानियत के लिए बुलंद हो, ऐसी आवाज़ ही की दो।-
जो मय तुम्हारे सर चढ़ गयी है, सारी उतर जाएगी.
तालीम लेकर देखो मदरसे की नस्लें सुधर जाएंगी..-
वो "शख्स" "तहज़ीब-ए-अदब_तालीम-ओ-अदब" "अपनी-ओ-ग़ैरों" की "सुख़न" बताता है
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"मुक़म्मल" पाया उसे, वो कभी-भी "अमल" नही करता-ओ-दूसरों को "इल्म" सिखाता है
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Ye had se zyada qabiliyaten bhi na....
Ek ajab hoti hain..
Jhan taleem ki sari sarhden barbad hoti hain..-
लोगों के लहजे से झलकती है,
तालीम वह तरबियत।
कोई डिग्रियों की सनद दिखा कर,
खुद को आलिम न कहे।।
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छूना चाहते हैं,
चंद दिनों में बुलंदियां सभी..
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सब्र की तालीम भला अब रखता कौन है..!!-
मेरी डिग्रीयों से मेरे इल्म की तस्दीक ना करिए
मैंने तालीम ज़िंदगी के मकतब से ली है-
Meri taleem mujhe
Ijaajat nahi deti warna
Vaar mai karun agar to
Tum tutoge nahi bikhar jaoge-