जल्द दे आवाज़ मुझे
मैं घर से निकलता हूँ
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तु पुकार मेरा नाम
मैं दरवाज़े पर मिलता हूँ-
𝚙𝚊𝚛𝚟𝚎𝚣.𝚜𝚑𝚎𝚒𝚔𝚑.96
मैं अब भी उस एक किरदार से परेशाँ- ए- हाल हूँ
वो कब का जा चुका है और मैं उसके इंतज़ार में हूँ-
तेरी हर इक बात को यक़ीन से तौला है
मैंने हर बार माना और आमीन बोला है
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मैंने सर झुका के तुझे सलाम किया
तूने बात कही मैंने एहतराम किया है
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देख मैंने तेरे लिए आज क्या क्या नहीं किया
तुझसे मोहब्बत भी की और प्यार से तेरा नाम लिया है-
मैं कोई "पतंग" की "कटी" हुई "डोर" नही जो चला गया
मैं तो "वो" हूँ ,जो "कटने" के बाद तेरे "हाथों" में रह गया-
ज़रूरी तो नहीं हर एक "शख्स"
"मोहब्बत" में ही पाया जाय
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कोई "बे-वजह" मुस्कुरा दे तो
ऐसे "इल्ज़ाम" न लगाया जाय-
तेरी याद में मेरे घर की रोशनी
रातोँ में रोशन रहे जाती है
तेरे लिए " अल्फ़ाज़ " बनाता और
"मेज़" पर "किताब" खुली रहे जाती है
किसी की आवाज़ नहीं आती "कानों" तलक
हर बार तेरी "आवाज़" आती है
ख़ामोश बैठे " दर - ए - दहलीज़ " पर
बस तेरे इंतेज़ार में "दिन-ओ-रात" गुज़र जाती है
बहोत कम वक़्त मिलता है खुद के लिए तुझसे
वो भी तुझे भुलाने में "याद" तेरी बहोत आती है
"बाज़ार-ओ-बाग़" से कितने भी ख़रीद लाएं खुशबू
तेरे गेसू से गिरे गुल मेरेकमरे को खुशनुमा बना देती है-
اچھا ہوا "کسی" سے
"محبت" نا ہیی "پرویز"
ورنہ "دو گھڑ" وقت نہیں
ملتا "بات" کرنے کے لیے
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अच्छा हुआ "किसी" से
"मोहब्बत" ना हुयी "परवेज़"
वरना "दो घड़ी" वक़्त नहीं
मिलता "बात" करने के लिए-
दर्दों का सितम पूछते हो
तो बताते हैं
चलो बैठो
साथ रोते हैं साथ मुस्कुराते हैं-
मैं मारा गया हूँ "मोहब्बत" में
ये देखकर यूँ आवाज़ ना करो
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मैं फ़िर एक अच्छा "क़िरदार" निभाऊँगा
मेरी गुज़ारिश है बस उसका कोई नाम ना लो
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"Aankhon" Ke "Isaare"
Kar ke Zara batao
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"Mar" Jaayenge Kisi Aur
Pe Zara "Mask" to hatao
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