गुस्से में अक्सर शीशा तोड़ना आदत है मेरी,
ना जाने क्यूँ अब इसमें वो सुकून नहीं।
सोचती हूँ तोड़ के देख लु नादान दिल मेरा,
पर कम्ब़खत ये दिल अब तुटता नहीं।-
तुम्हें देख इस हाल में, मुझे तरस अब आता है
अब जाना मैंने है ये, क्यूं सीसा पिघलता जाता है-
तेरे बाद ज्यादा कुछ नहीं बदला.....
ना मैं ना मेरी जिन्दगी बदली,,,
बस पहले जो आईने में मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखता था ना,,,
वो अब उदास चेहरा में बदल सा गया,,,-
Sisha or dil ekbar tot jaye to..
Use joda nahi jata .....
Barna.... chot lagsakta he....
Agar.......jud v jaye to dag jindegi bhar sath nahi chodti ...-
एक अजीब सा मंजर नज़र आता है
हर एक आँसूं समंदर नज़र आता है
कहाँ रखूं मैं शीशे सा दिल अपना
हर किसी के हाथ मैं पत्थर नज़र आता है..❣-
Iss berukhi duniya mein koi apna nahi hota
Waqt aane par har koi muh pher leta hai
"Ek madat maang ke dekhle"kehne waale log
Zarurat padhne par gayab ho jaate hai,kisi bhi ek bahane ke sahare.
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शीशे सा दिल जब टूटा हमारा
तो पत्थर सा हो गया।
जब तुम हमसे दूर हुए
तो हम पर पागलपन सा छा गया।।-
Sisa hai gar ek baar tut gya to
Dubara dekhna Munashib nhi lgta...-