'सती वियोग'
द्वितीय सर्ग
(अनुशीर्षक में पढ़ें)-
हठ से हारे भोलेनाथ भी,
दी आज्ञा फिर जाने को,
सती पुलकायी हर्षायी-सी
गयी महासभा सुहाने को।
यज्ञ में शिव का भाग ना था,
देख सती को आया क्रोध,
भरी सभा में देवगणों में,
अनुष्ठान का किया विरोध।
पिता दक्ष फिर बोले क्रूर,
कटूक्तियों का किया प्रयोग,
शिव का किया अनादर,
तिरस्कृत हुए त्रिलोक।
यज्ञाग्नि में सती ने फिर,
शरीर अपना भस्म किया,
शिवगणों का मचा उत्पात,
महायज्ञ फिर भ्रष्ट हुआ।
समाचार मिलते ही कुपित,
शिव का क्रोध प्रचण्ड हुआ,
हाहाकार फिर तीनो लोक में,
तांडव रुद्र का प्रारम्भ हुआ।
जटा से जन्मा 'वीरभद्र' जिसने
क्षणभर में यज्ञ विध्वंस कर डाला,
देकर पूर्णाहुति अग्नि देव को,
दक्ष का शीश हवन-कुंड में डाला।-
"राधे राधे"
हर समस्या का समाधान है,एक लोटा जल,
एक लोटा जल,सारी समस्याओं का हल।-
शती आत्मदाह भाग ४
( शती वियोग से शिव का तांडव )
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ऐ दोस्त मनुष्य होना मेरा भाग्य है...
और
शिवभक्त होना मेरा सौभाग्य है...
हर हर महादेव.🙏🙏-
शती आत्मदाह भाग ३
( शिव की निंदा से शती का आत्मदाह )
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आज शिवरात्रि हैं क्योंकी आज के दिन
शिव जी ने पिन्डी (शिवलिंग) का रुप धारण किया था ,
शिव जी और माता पार्वती जी का विवाह वैशाख़ की ,
शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को , दिन गुरूवार , शाम को
6बजे शिव जी और माता पार्वती जी की लगन हुई थी ।।
Har Har Mahadev...🙏🙏-
शती आत्मदाह भाग २
(शती का यज्ञ विरोध और दक्ष द्वारा शिव की निंदा )
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