मंगलाचरण
नमोऽस्तु महाकाल्यै महालक्ष्म्यै महासरस्वत्यै
सर्वदेवी सर्वरूपा सर्वकाले सुकुसूमे सुपूजिते ।।
महामाई महाविद्या महेसी महाविर्ये
महामंगले महोत्साहे सर्वकणे सदाविद्यते ।।
महाराणी महालया चंचला चंडी चंडीके
त्रिलोक्ये त्रिगुणात्मिका त्रिभूबने बिभुषीके।।
नमो गार्गी गायत्री गजलक्ष्मी नमो गणनायिके
जय जय देवी महादेवी लक्ष्मि शारदे नमोऽस्तु ते ।।-
मेरी शक्षियत कुछ नही मेरे अल्फाज ही मेरी पहच... read more
नमो मनोहरा मनोरमा मनोप्रिया मनमोहिता
नमो मोदकी मोदिनी मुक्तिका मोक्षिता सीता ।। १ ।।
नमो मृदा मृदानी मृगाक्षी मृदुला मृद हंसिका
नमो मृणाल मृणाली मृणालिनी मृणालिका ।।२।।
नमो मृत्सा मृण्मयी मृदुला मृणालिनी मृतिका
नमो मृदवंगी मृदुका मृणमाई मुग्धा मुद्रिका ।।३।।
नमो मुक्ता मुक्तिका मुकुला मुक्ति दायिका
नमो मुक्तदेही मुक्ताहासी नमो मुरखलिका ।।४।।
नमो मधुचंदा मधुपूर्णा मधुमति मधुलेखा
नमो मगती मगेश्वरी मधुरा मधु दुग्धदयिका ।।५।।
नमो महाश्री महनिया योगमाया महामाया
नमो महालक्ष्मी महानदी महागंगा मालविका ।।६।।
नमो महाश्वेता महती महेसी महान महनिया
नमो महागौरी मलीहा मलिका मल्लिका ।।७।।
नमो मंदा मंदना मंदुरा मंदारमालिका
नमो मंगला मंगल्या मंगई मंदीता मंदीपा ।।८।।
नमो मनीषा मनिता मंजिष्ठा मंजूषा मात्रिका
नमो मंजुभार्गवी मंजुसरी मंजूश्री मंजुलिका ।।९।।-
इश्क का मामला है कितना तुमको सुनाए
दुनिया में जुल्मों के भी अफसाने हजारों हैं ।
सुनता नहीं कुछ वो भी जालिम
हमें कहने को तो बातें हज़ारों हैं ।
कोई आता नहीं हमे मरहम लगाने को
आ जाते है लोग यहां सताने हजारों हैं ।
दुआएं क्यों करती मेरी मां मेरे जीने का
हम पर तो दुश्मनों के निसाने हजारों हैं ।
हम रहें न रहें इसमें क्या ही कोई बात है
दुनियां मे हम जैसे भी दिवाने हजारों हैं ।
उसे कहना हुस्न के जलवे भी जलाए रखे
इस आग में जलने को परवाने हजारों हैं ।
ये बात पता चली तो हमें है मिला सुकून
उसपे मर मिटने को मस्ताने हजारों हैं ।
खाली आया था खाली ही जाना हमें
लोग भी छोड़ चले पैमाने हजारों है ।
- प्रीतम नंद-
जब जरूरत हो तो दौलत नहीं मिलती
यूँ ही किसी को शोहरत नहीं मिलती।
तुझे पता है क्या तेरे गांव मे जो नदी है,
कभी जाके वो किसी समंदर से नहीं मिलती।
क्या सोच के तूने ये करम कर दीया मुरख
समझ ले नफरतों के बदले मोहब्बत नहीं मिलती ।
किस्मत से मिला तो कोहिनूर की कदर नहीं तुझे,
वरना बदकिस्मतों को तो पत्थर भी नहीं मिलती।
जब मालूम हुआ उसपे क्या बिता होगा सोच
क्यों उसके बनाए मूरत से तेरी सूरत नहीं मिलती ।
ये बता वो क्यू भुगते तेरी हरकतों की सजा
क्या बिगाड़ा के उसे रोने से फुरसत नहीं मिलती ।
अब मुझे भी दुःख है की क्यों मैं तेरी आवाज हूं
तेरी उसूलों से तेरी क्यों सीरत नहीं मिलती ।
इतना होने के बाद भी क्यों तू रोता ही नहीं
आंखे तेरी क्या कभी आईनों से नहीं मिलती।
तुझे यूं तड़पता छोड़ देने की चाह है पर क्या करूं
तुझे चाहने बालों से मुझे इजाजत नहीं मिलती ।
सुन ले तू जाहिल है गंवार है मतलबी है 'प्रीतम'
ख़ुदा मर गया है शायद जो तुझे मौत नहीं मिलती।-
आए कयामत और फलक जमीं ये थर्राते रहें
सर पे कफन बांधे हम भी कदम बढ़ातें रहें ।
तूफानों की पुर कोशिश हर शमा बुझाने की
यह चराग बुझातें रहें हम शमा जलातें रहें ।
आवाज़ों को मिटाने की खातिर तलवारें चलातें रहें
उंगली डुबाके खून में हम दास्तान बतातें रहें ।
है इरादा इन पर्वतों का रोशनी छुपाने की
यह क़द-क़ामत बढ़ातें रहें हम सूरज उगातें रहें ।
बंद करने को पिंजरे में लोग सलाखे बनातें रहें
होशला है बुलंद हमारा हम पंख फैलातें रहें ।
मारना है तो मार दो मुमकिन नहीं हमे झुकाने की
आप फसियां लटकातें रहें हम गीत गुनगुनातें रहें ।-
न धूप है न छांव है न दिन है न कहीं रात है,
क्या कहूं क्या न कहूं अनकही एक बात है ।
जो गूंजता मेरे कानों में है किसकी ये पुकार है
मुझे जो है पुकारती किस दिल की ये गुहार है ।
मेरे सर तलक जो है चढ़ा कैसा ये बुखार है
अपने रंग में मुझे ढल रही अजीब ये खुमार है ।
आंखों में तलब है क्यों किसकी मुझे तलाश है,
कोन है वो अजनबी क्यों लगे जैसे वो पास है ।
मेरा दिल क्यों ताबे' पे है क्या वो जादुई किरदार है,
देखूं में रोज ख्वाबों में किसे जो रुख़-ए- गुलनार है ।-
पतझड़ का डर है सावन का बहार भी है
तसल्ली है न आने का, तेरा इंतज़ार भी है ।
डर सहम जाता हूं अकेला पाके खुद को मैं,
तुझे पाने का इरादा है और इनकार भी है ।
हूं बेचैन दूर होके तुमसे और मैं खुश भी हूं
तुझ से नफरत भी है, दिल में पुकार भी है ।
जनता हूं के है फितरत तेरी बेवफाई का,
पागल हूं के तुझ पे मेरा ऐतीबार भी है ।
यूं न इतरा के तू अनमोल है, मेरी जिद नहीं
नहीं तो मेने कभी था खरीदा पूरा बाजार भी है ।
इश्क था कभी जो तभी मेने चुप्पी रक्खा है
आ देख मेरे मयान में पड़ा एक तलवार भी है ।
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कल रात कई इश्क-ए-परेशाना नजर आए
सहर-ए-आबाद रात को बिराना नजर आए ।
बिखरे हुए लाशों को रौंद के चले जो लोग
रात आई तो सुना है वो साहिदां नजर आए ।
आंखों के ख्वाहिस थी कोहसार-ए-हिमाला की
गंगा किनारे मुझे गौर-ए-गरीबां नजर आए ।
आशियाने में मैंने फरिस्तों को बुलाया था मगर
रात अंधेरी में अरबाह-ए-खबीसा नजर आए ।
तड़प रही थी रूह मेरी एक सुकून के खातिर
चेहरे पे मेरे सिकंज- ए-परेशान नजर आए ।-
बेधड़क दिल ये क्यों मुझे बेगाना कह रही है
मेरी ही नजरे क्यों मुझे दीवाना कह रही है ।
उलझन में डाल रही है तेरी निगाहे मुझे क्यों
तेरे आंखो को दिल क्यों मयखाना कह रही है ।
तबाह ए दिल से आहे निकल कर महफिल मे
यारों को क्यों तबाही का अफसाना कह रही है ।
खामोश बह रही फिजाएं खामोश जुबान भी है
सुन धड़कने क्यों तुझे यह तराना कह रही है ।
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ठोकरें खाते खाते चलना नही आता है मुझे, किसी का साथ छोड़ना
नहीं आता है मुझे ।
आंसू अपने आंख से बहादे कोई मेरे दर्द के, सिसक सिसक के रोना
नहीं आता है मुझे ।
पत्थर दिल हूं तो मोम बना दे कोई मुझको, लोग कहते है पिघलना
नहीं आता है मुझे ।
जैसा हूं वैसा ही दिखाता हूं तो पागल कहते है, नसमझो, चेहरा बदलना
नहीं आता है मुझे ।
अपने जुल्फों से उलझा दे मुझको कोई,फसें जाल से निकलना
नहीं आता है मुझे ।
कोई चाहे तो अपने बाहों से बांध भी लो,कहीं से फिसलना
नहीं आता है मुझे ।
कह देता हूं जो मेरे दिल को भाता है,दिल के बातों को बदलना
नहीं आता है मुझे ।
तू खत्म हो या समझ ले ए जिन्दगी बेरहम,यू मर मार के जीना
नहीं आता है मुझे ।-