थक गई हूँ दुनियाँ की जद्दोजहद से,
फिर शुकून से गोद में सुला दे माँ,
उब सी गई हूँ बेवजह हर राग से,
चैन की नींद आये, वो लोरी फिर सुना दे माँ।
तेरी याद में कभी मैं खो सी जाती हूँ,
सुनकर तेरी आवाज में हल्की सी हो जाती हूँ,
कुछ भी कह दूँ तुझसे तू नाराज कभी न होती है,
अपनी सी निःस्वार्थता हर किसी को दे दे माँ।
तेरे प्यार के ही सहारे बस बेबाक सी थी मैं,
फिक्र थी न कोई बंदिश, बस आजाद सी थी मैं,
खुद जमाने से लड़कर हमें आँच न आने देती है,
लाती है कहाँ से धैर्य इतना मुझे भी ये बता दे माँ।
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