मेरी नीयत
सदियाँ लगती है, इस नीयत को बनाने में |
दो वक्त नही लगता, खुद से खुद के खो जाने में |
दो पल के छलावे में , क्यूँ अपना ज़मीर बेच दूं |
नहीं खोना मुझे खुद को, चाहे जिंदगी छोड़ दूं |
मैं भी भटका था कल में, यहाँ से वहाँ |
ला पटका था खोकर खुद को, वहाँ से ये यहाँ |
खुश हूँ मैं अपनी नीयत पे, क्यूँ उसे छोड़ दूं |
नहीं खोना मुझे खुद को, चाहे जिंदगी छोड़ दूं |
यूँ भटक कर एक हीरा, खोया था मैं|
उस पछतावे से, पल -पल को रोया था मैं |
परख आई हीरे की, क्यूँ उसे छोड़ दूं |
नहीं खोना मुझे खुद को, चाहे जिंदगी छोड़ दूं |
तुम्हे पता है, कहीं भी मैं जाता नहीं |
किसी झूठे दिखावे में, कभी आता नहीं |
शायद जानों, इस दुनिया से, जब दम तोड़ दूं |
नहीं खोना मुझे खुद को, चाहे जिंदगी छोड़ दूं |
Pritam Singh Yadav
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