जाने क्यों हर रोज बस एक ख़्वाब आता है
बोसे लेने को इस जमीं पे माहताब आता है
सवालों की फ़ेहरिश्त बड़ी लंबी हो चली थी
दूर फ़लक से उन सभी का जवाब आता है
अँधेरे की एक चादर लिपटी हुई है बदन से
डर को भगाने खिड़की पे आफताब आता है
कई रोज गुजरे इन मायूसियों में कैद हुए
तोड़ने जंजीरें सभी अब इंकलाब आता है
नाउम्मीदी के भंवर में अब उलझना कैसा
बढ़ाने कश्ती मेरी हौसलों का सैलाब आता है
निकला जो 'मौन' बुलंद इरादे साथ लेकर
लौटकर हर शख्स फिर कामयाब आता है-
“Daldal hain sawaal wo sabhi,
Ishq mein jinka jawaab chupana padta hai...”-
जीते जी राहत ना मिली ए दिल
अब मरने में हमारे बवाल कैसा...
हंसने में थी जमाने की पाबंदियां तो
अब ख़ामोशियों पर ये सवाल कैसा...
नहीं पूछते ख़ैरियत हमारी तो रंज क्या
एक ज़र्रा ही हूँ फिर ख़्याल कैसा....
रेख़्तां भी हिला नहीं उसकी इनायत के बग़ैर
फिर खुद से भी और तुझसे भी ग़िला कैसा...
एक ख़लिश रह गई तेरे जाने के बाद कि
तूने भी इश्क़ किया होता मेरे हाल जैसा....-
Jiska wo Hume De na ske jawab,
Maine kuch aisa he sawal kr rkha hai..
Aj mere, kl kise aur ke, parso phr kise aur ke,
Arre yaar usne Toh kamal he kr rkha hai..-
Tumne Chhode Jo Dil Me
Mai Bas Vahi Sawal Likhta Hun...
Aur Logo Ko Lagta Hai Mai
Kitna Bemisaal Likhta Hun...-
सब तो है, एक तेरा ना होना ही बवाल कर जाता है
मैं हूँ भी या नहीं, मेरा वजूद ही सवाल कर जाता है-
waqt bewaqt, khayalaat badalte rahte hai
aksar sawal whi rahte hai jawab badalte rahte hai-