Mai apni uljhano ko suljhau kaise
Khamoshi me shabdo ko lau kaise
Umeeden dastak dekar laut jati hai
Mai Khali dahleez se wapas aau kaise
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बड़ी नींद का सौदा करने,
निकल पड़े हैं पांव अभागे, जाने कौन डगर ठहरें... read more
Mere liye
Mai aadhi adhuri insaan ni bani
Jo Kia pura kia puri shiddat se
Hasna toh aise ki jaise bahar aa jaye
Rona toh aise jaise barish ho khi
Kuch kha toh aise jaise patthar ki lakir
Aur chup hona toh jaise shant dariya
Kisi se mohabbat ki toh beintehaa
Aur ruthna toh swabhiman ki had tk
Pura pura jeena aasan ni hai
Pr maine kbhi aasan ni chuna
( Happy birthday Sonali ♥️)
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Shikwa nahi hai usse Ab toh sabr kr lia
Jbse mere aitbar ka bhi usne qatl kr dia
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जाने कितनी बेचैनियां है
और ना जाने कितने सवाल
मेरे मुकद्दर में सहर है ही नहीं
ये तल्ख सी ज़िंदगी और गुजरते साल
खुद से वफादारी निभाई न गयी
जाता नहीं था दूसरों का ख्याल
कोई रात इस तरह भी आये काश
कि सो जाऊं बिना कोई मलाल।-
जिन लम्हों में तुम खुशी चाहते हो
वो पल तुम मेरे साथ काट सकते हो
जब भी कोई तकलीफ़ हो या परेशानी
वो ज़ज्बात मेरे साथ बांट सकते हो
कभी गुस्से से मन भारी हो जाए
तो तुम मुझे बेझिझक डांट सकते हो
जब मै तुम्हे हर तरह से पूरा कर पाऊ
तो ये उम्र मेरे साथ काट सकते हो
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गुनहगार हुआ मैं उस जुर्म का
जिस को करने का खयाल तक नहीं आया
उसको चाहा फिर भी उसकी चाह ना की
खुद को खोने और उसको ना पाने का
मलाल भी नहीं आया
रूखसत जो किया उसको इस आशियाने से
घर वो ले गया , मेरे हिस्से बस मकान आया
ये आखिरी लफ्ज़ मेरे ना कर सकेंगे वो दर्द बयां
दिल ही जानता है किस दिल से मैं वापिस आया-
(सिमटती दुनिया)
कभी-कभी मुझे लगता है पिछले एक से दो दशकों में दुनिया का विस्तार नहीं हुआ, ये सिमटती गई है।कला के मंच से सिमटकर टेलीविजन , टेलीविजन से सिमटकर कम्प्यूटर, कम्प्यूटर से सिमटकर मोबाइल फोन में रह गई है, बात रखने के लिए कहानी , नाटक, उपन्यास , कविताओं से सिमटकर लोग यूटुब शाट्स और इंस्टाग्राम रीलस में रह गए हैं। सब कुछ इस ६ इंच की स्क्रीन में सिमट रहा है- प्रकृति के एकदम विपरीत क्योंकि प्रकृति तो असीमित है, विस्तार का प्रतीक है और मनुष्य को भी उसने वैसा ही बनाया है , पर हम अब स्वयं ही सीमित होते जा रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप.....शेष आगे-
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कितने दुख लगते होंगे
मरते को मर जाने में
कितने आंसू बहते होंगे
अंदर के घाव सुखाने मे
कितने अपने खोते होंगे
अकेलेपन की चौखट तक आने मे
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