दूसरों के बदलने का ज्यादा ख्याल है,
यूं मालिक बनना कब बंद करेगा तू ?-
समझदारी वही दिखाओ जहा उसकी जरुरत हो
ना समझदार तो तम्हें लोग वैसे भी समझते है-
सुना था समझदार को इशारा काफी है
यहां पूरी बात सुनने के बाद भी नाराज़गी हैं।
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कैसे समझेगा तुम्हारी अच्छाई को नादान
जो मन से सोच कर है परेशान
कहती है मुझसे नाराज़ नही हूँ तुमसे
फिर गलती क्यों नही कर देती तुम माफ-
Thoda sa pagalpan bhi
jaroori hai zindagi me
Samazdar log kaha khul ke
muskura sakte hai zindagi me....!-
Jo Muhabaat Mukamal Na Ho Sake
Ush Muhabaat Mein Samajhdari Dikha Kar Usee Chod Dena Cahiye
Ya Phir Dil Ke Samny Jhuk Kar Usee Muhabaat Karna Cahiye?-
शरारत भी मियाँ अब तो सोच कर करते हो
ये कैसा बना लिया है आखिर तुमने खुद को
इतनी भी समझदारी अच्छी नहीं होती है
जीवन की राहें हमेशा कच्ची नहीं होती है
खुलकर जीना भी ज़रूरी है इस जहान में
कब तक क़ैद रहोगे तुम डर के मकान में
भरोसा जब टूटता है तो यकीनन दर्द होता है
पर हर दर्द में ही तो छुपा एक हमदर्द होता है
मोहब्बत भी मियाँ अब तो सोच कर करते हो
ये कैसा बना लिया है आखिर तुमने खुद को।-