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उतरा था दिल कि सरज़मी पर वो
फिर न जाने किधर गया
रहा दिल और दिमाग़ दोनों में
छूकर जाने किधर गया
शायद झोंका था हवा का कोई
तन से होकर मन से उतर गया
उतरा था दिल कि सरज़मी पर वो
फिर न जाने किधर गया-
तू जो नही तो ऐसे पिया हम जैसे सुना अंगना
नैन तुम्हारी राह निहारे नैनन को तरसाओ ना-
बेबाक तमन्नाओं को जगाते ही क्यों हो..
खामखां दिल को इतना सताते ही क्यों हो..
कहा था ना सम्भल कर रहने को..
अब अपनी बेचैनियां हमें बताते क्यों हो..!-
जैसे मैं तकती हूँ तुम्हें एक सूरजमुखी की तरह
क्या तुम भी तकते मुझे अपनी रौशनी की तरह-
तुम्हारे पास कोई जादू है या कोई दवा
न मिलूं तुझसे तो रहता हूं खुद से ही खफा
बिना बुलाए चला आता हूं दर अपना समझकर
तू इसे समझ लेना मेरी मोहब्बत की वफा
तुम मिले भी और मिले भी नहीं अब तक
ये रहेगी मेरी शिकायत तुझसे हर दफा-
दोनों को बहुत तकलीफ़ देती है वो मोहब्बत,
जहां चाहत तुम्हारी किसी और की हो गई हो।-