"ज़िन्दगी ने जिंदगी को जिंदगी के लिए जिन्दा जला दिया,
ऐ ज़िन्दगी ये तूने क्या कर दिया"
ये कैसा मजहब ,,,,,,,,,,,,ये कैसा मजहब में फ़र्क़ सीखा दिया,
ये कैसा घमंड मुझमे जो आ गया,
लोगो के लिए जीता था, आज खुद के लिए औरो को मार गया,
ऐ ज़िन्दगी ये तूने क्या कर दिया,
किस तरह की आदत या किस चीज़ की इबादत तू मुझे सिखा गया,
खुद की ख़ुशी के लिए औरों को मारने को मजबूर कर दिया,
ये सारा जहां मुझसे राख करवा गया,
ऐ जिंदगी ये तूने क्या कर दिया,
ये कैसा मंदिर ,,,,,,,ये कैसा मस्जिद का फ़र्क़ सिखा दिया,
जात पात के नाम पर हमको बाट गया,
एक दूसरे में इतना अंतर बता दिया,
ऐ ज़िन्दगी ये तूने क्या कर दिया,
इस भीड़ भाड़ की ज़िंदगी में भागना सिखा दिया,-2
औरों के लिए क्या कहूँ, खुद को समय देना भुला दिया,
दिल से नही, सिर्फ शक्ल से हँसने को मजबूर कर दिया,
ऐ जिंदगी ये तूने क्या कर दिया, Continued..
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