Shriradhepyare ✍️...
जब तक काम, तब तक नाम!
काम खत्म, फिर आप आम!!
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Shriradhepyare ✍️...
जबसे दिन में बात हुई, दिन ही रहा रात ना हुई !
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हुई हर पल बात,, पर बात थी कि ,,बात ना हुई!!-
Shriradhepyare ✍️...
लिखा वही जो दिल पर बीता !
लोगों ने कह दिया कविता !!
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Shriradhepyare ✍️...
एक-एक करके सारी शिकायत दूर कर दी मैंने
एक-एक करके सारे आरोप मुझ पर आ गए‼️-
Shriradhepyare ✍️...
हूं कितना अच्छा , तुम जानते हो!
हूं कितना बुरा ,यह तुम जानते हो।
जब मुझसे ज्यादा, तुम जानते हो!!
तो मेरा बुरा क्यों ,तुम मानते हो।।
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Shriradhepyare ✍️...
ना याद आए काम कोई
और गम ना कोई सताए हमें।
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यह सिर आपकी गोद में हो
और ना कोई हटाए हमें ।।
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‼️संगीत‼️
स→सरल।
ं→ निरंतर।
ग → गंतव्य।
ई→ईश्वर।
त→ताल।
संगीत= “सरल” एवं “सहज” बनकर
“निरंतर” “गंतव्य” (लक्ष्य) को याद कर
“ईश्वर” के सामने एक “ताल” (स्थिर)
में बैठकर प्रभु का स्मरण करना !
इसी साधना को संगीत कहते हैं।-
Shriradhepyare ✍️...
निकले थे जहा, वहां पहुंचे नहीं ।
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गुमशुदा है हम , हम में ही कहीं ।।
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Shriradhepyare ✍️...
कि हर कहने वाला अपना, अपना कहां होता है।
बेहोशी में देखा गया सपना, सपना कहां होता है।।
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Shriradhepyare ✍️...
नहीं आया वह शख्स, जो कभी बड़ा “करीब” था ।
क्योंकि ,,
शादी में आने के लिए, वह अभी बड़ा “गरीब” था ।।
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