मनुष्य सोचता है,
करता है गहन चिंतन,
सत्य पर, असत्य पर,
पाप पर एवं पुण्य पर ।
मनुष्य समझता है,
जानता है उसका चेतन,
उचित-अनुचित का अंतर,
ज्ञानता एवं अज्ञानता का अंतर।
किंतु, मनुष्य पाखंडी है,
निष्पादित करता है वह प्रायः
असत्य एवं अज्ञानता से प्रेरित
दोष युक्त अमानवीय कार्य।
-