सफरनामा-15
एक कविता की तलाश में,
निकल चुका था कवि,
उग आया था चाँद,
ढल गया था रवि ,
सोचा की उसने क्या लिखूं
चाँद तारों को लिखूँ,
या सारा आसमाँ लिखूँ,
फिर कोई ख्याल दिल में आया,
एक सवाल दिल में आया,
क्यूँ ना महबूब की मुस्कान को लिखूँ,
दिल के छुपे अरमान को लिखूँ,
आखिर वो कुछ लिख ही ना पाया,
शायद कोई मज़बूरी रह गयी,
किसी और दिन होगी पूरी कविता,
पर आज अधूरी रह गयी..
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