सफरनामा -175
1.ये लम्हे गर्दिश के यूँ ही गुज़र जाएंगे,
शीशे के ख्वाब सारे यूँ ही बिखर जाएंगे ,
2.ये रात खत्म भी होगी कभी
ये सितारे भी लौट कर घर जाएंगे,
3.कोई खोल कर आज़ाद कर दे इनको
वरना परिंदे पिंजरों में मर जाएंगे ,
4.कहते हैं लोग, वक़्त ज़ख्म भरता है सबके,
मुझको लगता है, मेरे भी भर जाएंगे,
5.मुझसे बहुत दूर जा रहे हैं यार मेरे,
सोचता हूँ आवाज़ दूँ, शायद ठहर जाएंगे,
6.और गया नहीं कहीं , मैं यहीं हूँ "प्रीतम",
तुम आँखे बंद करना , मेरे साये नज़र आएंगे।
अमित "प्रीतम"
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