धरा को आनंदित करने, प्रकृति निखारने हेतु है आती,
अपने पैरों पर बूंदाबांदी की पायल छनकाती...
काले काले केशों से आकाश को ढांपती वर्षा रानी, वर्षा की बूंदों से टप टप गिरता सूखी धरती पर पानी।
नदी, तालाब, पोखर, जोहड पानी से लबालब भर जाते हैं,
वनस्पति हो, चाहे मनुष्य या पँछी, सभी आनंदित हो जाते हैं।
मनुष्य का हस्तक्षेप प्रकृति बहुत सहन नहीं कर पाती,
जो वर्षा लोगों को आनंद विभोर कर जीवन से परिपूर्ण कर देती है, वही बाढ़ ले आती।
समृद्धि करें यह प्रार्थना जो भी मौसम आए, खुशियों की बहार लाए,
सभी स्वस्थ व खुश रहिए और खुशियाँ फैलाएं।
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