शारीरिक रावण/मानसिक रावण
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जला देते हैं कागज का रावण हर बार इस त्यौहार में,
अबकी उस रावण को भी जलाइए जो बसा है व्यवहार में!-
मैं तेरे इस ईद गले ना लगाने से परेशान नहीं हूं ,
गले लगाने के लिए अभी पूरा जहा पड़ा है ,
पर तुझसे जो गले लग जाते तो इस जहा की जरूरत ना होती...!!!-
तेरे दूर जाने से वो मोहब्बत ख़तम ना हुई ,
दुख के दिन चले गए , लेकिन वो जख्म अभी ताजा हैं...!!!-
रूहानी मोहब्बत ही मजार तक ले आती है तेरे सजदे के लिए ,
जिस्मानी मोहब्बत तो अक्सर ना काबिल-ये-ऐतबार और जवानी के उम्र के साथ ख़तम हो जाती है...!!!-
तुम आई तो खुद से मिले है ,
यू लग रहा हैं रेगिस्तान भी समंदर बन गई है ,
थी तलाश जिन लकीरों की बचपन से ,
की ना जाने किसने मेरे हक में दुआ मांग ली...!!!-
सुनो आंखों में थोड़ा ,
काजल लगाया करो ,
ऐसे होठों पर हल्की सूरज ,
की लाली लिए चांद ,
निकला नहीं करते घर से...!!!-
मेरे प्यार को अनाड़ी समझती हैं
शिव की तरह और रकीब की
बाहों में लिपट कहती हैं
मैं पारवती सी प्यार
करती हूं उसे...!!!-
हम चांद से पूछते रहे अभी रात बची हैं कितनी ,
और वो हमसे मोहब्बत निभाते निभाते किसी और पर मर मिटे...!!!-
ना रहो इस भरम में क्यों की अक्सर वो दिल और हाथों की लकीरों को एक दूसरे से जूदा रखता है
यू फिकर करना लोगों की तो मेरी अदा हैं ,
हमने अक्सर इन दो फिकर की दीवारों में मोहब्बत की लाश जलते देखी हैं,
की जिसे सजदे में नहीं , तुमने किस्मत में पाया है...!!!-