सर्दी की एक दोपहर,
छत का एक किनारा,
छन के आती गुनगुनी धूप,
हाथों में चाय का कप
और प्याज के पकौड़े,
और हम,
ढेरों बातों में डूबे।
क्या दुनिया में
इस से खूबसूरत
और कुछ हो सकता है।-
तुमपर मेरी अटूट श्रद्धा
हमेशा मुझे ये एहसास दिलाती है कि
मैं कितना खास हो गया हूं ,
मात्र तुम्हारे साथ जुड़कर।.-
दुनियादारी की उलझनों में,
फस कर हम तुम,
जब कहीं खो जाते हैं,
एक दूसरे से,
तब मैं ढूंढने निकलता हूं तुमको।
मैं ढूंढता हूं,
तुम्हारी मुस्कान,
तुम्हारी शरारतें,
तुम्हारी नादानियां,
खुशियों से भरी तुम्हारी आंखें,
सब संभाल लेने वाली तुम्हारी बातें,
और तुम्हारे हाथ की बनी चाय का स्वाद।-
कोई तस्वीर जब खींची जाती है
तो कैद हो जाता है उसमें वो वक़्त
हमेसा हमेसा के लिए,
और जब जब वो तस्वीर
वापस सामने आती है,
तो वो जीवित हो उठता है फिर से,
जीवित हो उठती हैं
वो आवाजें,
वो लोग,
वो जगह,
वो सब कुछ,
जो एक वक्त में जीया गया था।
ये सब कहने को स्थिर है,
एक तस्वीर है,
पर जीवित है
मन के भीतर सब।-
तुम्हारे साथ,
तुम्हारे बिना,
तुमसे बिछड़ कर,
तुमसे इतर,
ऐसे जाने कितने scenario,
एक रोज बैठकर,
सब imagine कर लिए मैंने,
जो scenario सबसे ज्यादा,
वक्त की कसौटी पर खरा उतरा,
वो था,
एक शाम,
तुम,
हम,
चाय,
बातें,
मुस्कुराहट।-
एक वक्त तक मुझे लगता रहा
कि संगीत सबसे ज्यादा सुकून देता है,
भावनात्मक समर्थन देता है,
शांति देता है मन को।
फिर मैं तुमसे मिला
और मैने देखा
बनी बनाई धारणाओं को बदलते हुए।
तुममें अपना सुकून पाते हुए।-
कभी सोचता हूं कि
लिख दूं दो चार पन्ने
और थमा दूं तुमको
की लो देखो इतना प्यार है तुमसे.
और ये वजह हैं मेरी
तुमसे प्रेम करने की।
इसी उधेड़बुन के बीच कि
क्या लिख दूं क्या छोड़ दूं,
तुम आकर मेरे साथ बैठ जाती हो।
और मुझे एहसास होता है कि
कोई वजह नहीं चाहिए
तुमसे प्रेम करने की,
ये मेरे जीवन की
सबसे सहज प्रक्रिया है।
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हालांकि
एक उम्र गुजर चुकी है,
बहुत वक्त बीत चुका है,
इसके बाद भी
जब हर सुबह
मैं तुम्हें देखता हूं
तो सोचता हूं,
बनाने वाला इससे खूबसूरत
और क्या ही बना सकता है।-
कभी कभी मैं सोचता हूं कि
कुछ ऐसा लिखूं
जो आज तक लिखा न गया हो,
जो अपने अंदर साहित्य की सारी खूबसूरती
और सारा श्रृंगार अपनी पंक्तियों में समेट ले।
या
कोई ऐसी तस्वीर खींचूं
जो अपने अंदर
दुनिया की सारी खूबसूरती
और कैद होते सुकून को समेट ले।
और
फिर मैं तुम्हें देखता हूं
मुस्कुराते हुए
और
सोचता हूं,
इस से खूबसूरत दुनिया में
और कुछ हो सकता है क्या।-
एक रोज चिढ़कर
कहा था न तुमने कि
"जाओ ढूंढ लो
दुनिया सारी नहीं मिलेगा
तुमको कोई,
मेरे जैसा"
मैंने उस रोज
कुछ भी कहा नही तुमसे,
पर आज मैं तुमसे एक बात
साफ साफ कह देना चाहता हूं,
वो ये कि,
"मैं नहीं हूं
किसी तुम जैसी की तलाश में
मेरी हर तलाश
तुमसे शुरू होकर
तुम पर ही खत्म होती है;
मैंने जिया है तुम्हारे साथ
अपना अल्हड़पन,
मैं तुम्हारे साथ साथ ही
हमारे जीवन के उथल पुथल को
समतल करता चल रहा हूं,
मैं ढलती उम्र में
धीमे कदमों और दुखते घुटने के साथ,
हर तलाश में
तुम तक ही पहुंचना चाहता हूं।"
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