वह एक बहती दरिया है,
लहर ए इश्क़ लिए चलती है।
उसके गुमान पे चोट मत कर वो
चट्टानों तक प्रतिघात करती है।
हाँ वो अविरल,आजाद ,चंचल है
केवल एक तरीका ही बुझाती है।
तू बन जा विशाल समंदर वो
वो खुद ब खुद मिलने आ जाती है।
हो जाना रूबरू उन भँवरों से
जो छिपते-छिपाते तुम तक आती है
फिर मिलन होगा ज्वार-भाटा सा
जब सुनामी ए जज्बात कहर ढाती है-
हवाओं में बहती राग तुम,
मेरे सपनों का आधा भाग तुम...
ओ शंख कमल चौराहे वाली,
काशी तुम, प्रयाग तुम...
-
मेरे कमरे ही जैसा,
उसका शहर था
यहां भी और,
वहां भी सैलाब था
यहां दबी आवाज,
वहां गरजता बादल था
यहां दिल पे घात,
वहां भीषण बरसात था
मै भी डूबा और,
वो भी डूब रहा था
बस फरक इतना ही था
की यहां सब्र टूटा,
वहां बांध टूट गया था।-
भीतर बहुत शोर है , ये चेहरे से सन्नाटा हटा के देख
आ कभी मिलते है , फिर तु खुद को झकझोर के देख
-
ये रातें, ये जुल्फे,ये खामोशी,ये बातें
ये घायल जबां, ये बोलती हुईं आँखें
ये पैरो की धप धप , ये दिल मे धक धक
एहसासों का दामन,जज्बातो का बक बक
ये उंगलियों में दंगल, ये मन का चंचल
इश्क़ का आग़ोश, जुल्फों का आँचल
ये सर्द हवाएं , और उसमें भी बारिश
कितनी है कातिल कुदरत की साजिश-
अबकी जो इन्कलाब होगा
अब लहू नहीं लावा होगा
तलवार नहीं कलम होगा
ये हाथ नहीं हथियार होगा
इस महासमर में द्वन्द होगा
जानदार , शानदार होगा
बेड़ियों से आजाद होगा
एक जीवनी आबाद होगा
जिंदादिल , बेमिसाल होगा
ज़िन्दगी जिंदाबाद होगा
अबकी इन्कलाब होगा
-
समन्दर- ए- इश्क में वो कश्ती लेकर गई है
आज भी खड़ा हूं किनारे पर वो लौटी नहीं है-