रूक जाना होता तो चलना ही क्यू था, माना की ङर था, मेरी आँखों में कल तक पर आज वो ङर नहीं है।
कोशिश कम रह जातीं, तो सपनों की चाह का होना ही बेकार था ना फिर तो।
लेतीं हूँ कदम-कदम सोच समझ कर, पागल तो लोग यूँ ही कहाँ करतें है, मुझे तो समझ आता नहीं।
कहीं-कहीं पागलपन का होना जीत दिला जाता है, कहीं-कहीं जोश थोड़ा कम करना पङ हीं जाता है।
-