merikalamse   (Bharti✍️)
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Joined 27 February 2019


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10 JUN 2023 AT 22:31

जो साथ नही उस पर ऐतिबार कैसा
बेवफ़ाओं पर वफ़ा का ख़ुमार कैसा

देख लेना नाम मेरा महफ़िल में लेकर
कातिब गजलें न पढ़ दें तो ये प्यार कैसा

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9 APR 2023 AT 2:01

अब....लोगों के, जुमलों से मरने लगी हूँ भारती
इस ज़माने में.....मेरी जां, ज़हर काम नही करते

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20 MAR 2023 AT 3:21

दफ़न होते हो मुर्दे जहां दफ़न कर दो तुम अब मुझे वहाँ...
सितम ढाए है ज़माने ने जैसे ढह जाते तूफ़ां में मकां यहाँ।

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15 MAR 2023 AT 10:00

खामोशियाँ भी बयां करनी पड़े तो ऐसी दिल्लगी का क्या
ज़ुबा से शब्दों की ख्वाइश् तो आँखों की चिलम का क्या

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5 MAR 2023 AT 17:59

खुली किताबों के किस्से भी यहां कितने अजीब है
जिसके हिस्से हवा के रुख उसके हिस्से वैसे पन्ने है
और देखो न कातिब भी कैसा कमाल करता भारती
मुंह पर तारीफ़ का पुल बांध पीठ पर वार करता है

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1 MAR 2023 AT 0:50

भवरों के डर से कहां गुलो ने खिलना छोड़ा
राहों की डगर में कहां मुसाफिरों ने मिलना छोड़ा

आसमां की चाहत में कहां बादलों ने बिलखना छोड़ा
इश्क़ की बेड़ियों में कहां दिलों ने जकड़ना छोड़ा

गेसुओ की धारा ने कहां आंखों से बरसना छोड़ा
तकलीफों की दुनियां में कहां उम्मीदों ने सहारा छोड़ा

परवाह की ज़माने की कहां तुमने मंझदार में छोड़ा
धुत नशे में बैठे तुम कहां तुमने कोई मैखाना छोड़ा

सासों की कतारों ने कहां किसी के लिए ठहरना छोड़ा
बिलख मेरी मौत पर तुमने कहां महफिलों में जाना छोड़ा

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25 FEB 2023 AT 9:16

सुबकती सिसकियों की आवाज़ है हम
जुबां से शब्दों की आजमाइश है जिंदगी

खुशियों की तलाश में बेज़ान है हम
समुंदर में मिलती नदियां है जिंदगी

मौत की राहों में बेफिक्र मुसाफ़िर है हम
बस मां की दुआओं से सवरती है जिंदगी

दर्द-ए-इश्क़ लिए दिल में फिरते है हम
हम नवा दोस्त न हो तो बेजार है जिंदगी

फूलों पर भवरों के जैसे लिपटे है हम
इश्क़ से मिले नजात तो नादार है जिंदगी

चराग ए तमन्ना में इकलौते जुगनू है हम
ख्वाबों की मशालों का नाम है जिंदगी

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31 JAN 2023 AT 10:34

मैं इक लड़की हूं मोहल्ले में क्यूं खड़ी हूं
मैं ही क्यूं मर्यादा की खूंटी पर टंगी हूं

ऐसे बैठो कम बोलो सुन कर रोज आगे बढ़ रही हूं
घड़ी की सुइयों में सिमटी हां मैं इक लड़की हू

में ही क्यूं रिश्तों के मंजदार में फसी हूं
में ही क्यूं किचन की बेड़ियों से बंधी हूं

डिग्रियां थामे हाथ में अव्वल दर्जे पर सजी हूं
रोटी गोल न होने पर क्यूं ताने सुन रही हूं

सर्वगुण संपन्न होकर भी दहेज़ के लिए जल रही हूं
देवी कहता है ज़माना फिर क्यूं में रोज मर रही हूं

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12 JAN 2023 AT 7:56

लफ्ज़ों को होंठों पर सजाए बैठे है,
हम तुमसे जानी दिल लगाए बैठे है।

खुदा जाने मोहब्बत के कसीदे जानम,
हम तुम पर होने को कुर्बान बैठे है।

किताबों में समेटे है अल्फाज़ हज़ारों तुमने,
हम तो अपने हिस्से के ख़्वाब समेटे बैठे है।

दोस्ती की फ़िराक में था ये दिल मेरा भारती,
लेकिन अब तुम पर हम दिल हार बैठे है।

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9 JAN 2023 AT 13:25

कितने नासमझ, कितने बेजान दिल वो होते है...
दिन में झूठी मुस्कान संग, रातों में अकेले रोते है।

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