दर्द आपका
खुशी आपकी
मुझमें समाकर
आलौकिक प्रेम बन
वैराग्य बन गई है।-
ना आएगा यह अवसर बाद में फिर अब तो मानो ना
कि VIRUS है तो रहने दो कहना क्यों है कि भागो ना
🤣😂😷
(Part-3)-
Jab Zindagi than so jayegi
Jab woh akhiri saas chalti hogi
Tab mujhe kandha dene
Laut kar aaoge kya...?
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जो चरित्रहीन होते हैं, सुंदर वही होते हैं।
आजाद लोग ही खूबसूरत होते हैं।
"कोने में अपनी ही कुठाओं में दबी खामोश औरत चरित्रवान औरत?
या
"किसी खुले में अपने मन से ठहाके लगाकर हंसती चरित्रहीन औरत ?...
कौन सुंदर है?
वो जो चाहे तो आगे बढ़कर चूम ले। बोल दे कि प्यार करती हूं या वो, जो बस सोचती रहे असमंजस में और अपने मन का दमन किए रहे। दमित औरतें निसंदेह सुंदर नहीं होती, पर स्वतंत्र चरित्रहीन औरतें होती हैं खूबसूरत।
सोचना, जब अपनी टांगे फैलाई तुमने अपने पुरुष के सामने अगर वो केवल पुरुष के लिए था तो ही वो चरित्र है लेकिन वो तुम्हारे अपने लिए था तो चरित्रहीनता। अपने लिए, अपने तन और मन के लिए खुल कर जीती औरते सुन्दर लगती है। तुम उसे चरित्रहीन ही...
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(3)
वो सामने कभी मेरी तारीफ़ ना करना,
मगर महफ़िल में बस मेरा ही नाम गिनना;
कई सालों तक वो पुरानी शर्ट पहनना,
मगर हर साल मेरी नई uniform पर खर्च करना....
अपनी जिंदा ख्वाहिशें दफ़न करके,
जो मेरी हर ख्वाहिश पूरी करना चाहते हैं....
कठोर हाथों से भी जो माथे पर,
कोमल सा स्पर्श कर जाते हैं.....
पापा ; यूँ बाज़ार से खुशियाँ समेट लाते हैं.....-
प्यार या सजा
पता ही नहीं चला मुझे इस कदर लत लग जाएगी तेरी ।
तेरा वो क्लास बंक करके घण्टों बातें करना, एक साथ बैठ कर पढ़ना एक साथ खाना, कालेज आना, वापस जाना।
ऐसी लत लगी तेरी, एक पल आंखों से ओझल होने पर मेरी कायनात हिलती पूरी । याद है ना पहले जब हम लड़ते झगड़ते थे और बस कुछ पल बाते ना करते,उसी में लगता मेरी पूरी दुनिया उजड़ गई और अब तू अचानक मुझे इस कदर छोड़ गई ।अरे अपने साथ मुझे भी ले जाती या हल्की सी मुस्कान के साथ एक प्यारी सी मौत दे जाती। यूं तड़पता तो नहीं कमबख्त कोई समझता तो नहीं ।
अब समझ नहीं आ रहा कैसे करू बयां, अपने दर्द की ये दासतां ?
कोसिसें तो लाख की छुपाने की पर क्या करता आँखो ने सब बता डाला जब दोस्त आये थे हाल पूछने मेरा मैने कुछ ना बोल कर भी उनको रुला डाला। आखिर करता भी तो क्या सब छुपाना भी जो था, अब तूं ही बता और करता भी क्या चुप रहा, चुप रहा और बस चुप रहा पर किसी से कुछ ना कहा .........-
Our prejudice could never make you feel comfortable to speak out loudly...
It's our poor culture which convinced you, suppressed you, tied you to make you suffer silently.-
मेरे इंतजार का तुझे आजतक खबर न हुआ
किसी बारिश के बूंदों का मुझपर असर न हुआ
बरसो से आज तक मेरा मन लगे सुखा बंजर
मै भटक रही थी प्यास से और तू ठहरा समन्दर-