Anjali Sharma   (Anjali's pen)
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Joined 31 October 2017


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4 NOV 2021 AT 23:59

काश दियों सी रोशनी, आँखों में होती..
काश दिलों में भी रंगोली होती।
काश फूलों जैसे मन सजे होते...
काश मिठाईयों सी मीठी, बातें भी होती।

काश उदासी न छुपानी होती..
काश मुस्कुराहट में इतनी ताकत होती।
काश सबका घर रौशन होता...
काश सबकी "Happly Diwali" होती।

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18 JUL 2021 AT 0:46

चाहत थी कि तुम्हारी याद न आए,
क्या करें ?... अब दिल को आदत बहुत है।

कोशिश थी कि पलकें नम न हो पायें,
क्या करें ?... इन आँखों में पानी बहुत है।

चाहत थी कि सबको खुशियाँ दे पायें,
क्या करें ?... गर सबकी ख्वाहिशें बहुत हैं।

कोशिश थी ये दर्द तुमसे मिलकर बाँटें,
क्या करें ?... अब पर्चे पर कहानी बहुत हैं।

अक्सर कत्ल हुआ मनमर्जियों का यूँ ही,
क्या करें ?... परवरिश "संस्कारी" बहुत है।

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31 MAY 2021 AT 1:37

जब बहुत कुछ हो कहने को, तो कोई लफ़्ज़ कुछ कह नहीं पाता...
बहुत अंदर तक तबाही मचा देता है वो आँसू ; जो आँख से बह नहीं पाता ।

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25 FEB 2021 AT 20:38

इक पल में वो चेहरा किताब की तरह पढ़ जाती है,
इस हद तक कि,
"मुस्कुराहट" और "मुस्कान" का भी फर्क समझ जाती है...
माँ कभी 'अनपढ़' नहीं होती।

चाहे कितना भी छुपालो तुम,
पूछे बिना वो जान जाती है...
कि आँखें सोने से लाल हुई हैं या रोने से!
माँ कभी 'अनपढ़' नहीं होती।

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8 JAN 2021 AT 0:20

एक और दिन गुज़र गया।
सूरज ढल गया, चाँद निकल गया
और मैं खड़ी रही इसी इंतज़ार में.....
कि शायद तुम पुकार लो।

गुजरते वक्त के साथ,
मेरा मन गुज़रा ही नहीं...
थम गया बस ये सोचते सोचते...
कि शायद तुम पुकार लो।

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7 JAN 2021 AT 23:54

दिल जब जब दुखा मेरा, नाराज़गी से छुपाया।
गम जो भी बचा दिल में, मुस्कुराहट से छुपाया।
कुछ अधूरे से ख्वाबों को फ़िर सपनों में सजाया।
बाकी जो भी था बकाया, सब आँसुओं में बहाया।

न किसी से कुछ कहा, न किसी को बताया।
मैं कल भी मुस्कुराया था, मैं आज भी मुस्कुराया।

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6 NOV 2020 AT 23:41

क्या इन मुस्कुराते होठों के पीछे छिपे, करोड़ों किस्से कोई सुन पाएगा?
क्या तुम सुना पाओगी?
या वही कहोगी जो कहती आयी हो सभी से....
"बस मुझे आदत है, हर वक्त खुश रहने की। "

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6 NOV 2020 AT 20:46

The most sensitive things are
mostly "Unsaid".

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19 OCT 2020 AT 0:11

तारीफें चाँद की करते हो,
ज़िक्र उसके दागों के साथ, क्यूँ नहीं ?

ख्वाहिशें गुलाब की रखते हो,
स्पर्श उसके काँटों के साथ, क्यूँ नहीं ?

चाहतें इश्क़ की करते हो,
दर्द-ए-इंतज़ार बर्दाश, क्यूँ नहीं ?

पसंदीदा हिस्से को तरसते हो,
हकीक़त से बेशर्त प्यार, क्यूँ नहीं ?

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20 SEP 2020 AT 1:38

अरसों लगे जुटाने में, ना बदलने की कोशिश करो,
ज़रा पागल हूँ मैं, तो मुझे पागल ही रहने दो।
बड़ी मुद्दतों से मिलती है, ये "मर्ज़-ए-मुस्कुराहट",
बीमार हूँ अभी तो लाइलाज़ ही रहने दो।।

मंजिलों की राह में, ना ठहरने की कोशिश करो।
खुदगर्ज़ कहें वो मुझे, तो खुदगर्ज़ ही कहने दो।।
सपनों की दौड़ में खो दी , अपनों की मोहब्बत
इस राह में अंगारे हैं, तो अब झुलसने तक सहने दो।।

हिम्मतें लगी लड़खड़ाने में, ना सँभलने की कोशिश करो।
अनंत तक है ये सफ़र, तो अनंत ही रहने दो।
हसरतें नहीं सबकी "इज़हार-ए-मोहब्बत"
बेवजह है खुद से इश्क़ अगर , तो बेवजह ही रहने दो।।

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