लकड़ियां जैसे श्मशान मे जलती हैं,
फूल उसके गुलिस्तान मे जलते हैं,
तुम क्या सोच कर दिल हार गए मुर्शिद,
चलो छोड़ो अब कब्रिस्तान मे चलते हैं ।।-
पता चले तो बताना , उसे लगाने वाला कौन था ?
वो एक लैला एक मजनू..... फिर जुदा हो गए,
अच्छी थी कहानी सुनाने के लिए,
बहुत मजा आया जमाने के लिए,
मैं जब सुनाता तो रो पड़ता,
खुदा तालियां बजवाता मुझे सताने के लिए ।।-
यकीन ना हो तो तुम भी आजमा कर देख लो,
जिंदा हूं या मर गया सीने से लगा कर देख लो,
सब-कुछ तो तुम्हारे मतलब से था, जिस्म, सांसे, दिन, ये घड़ियां यहां,
मर जाऊंगा तुमसे बिछड़ कर अब ये किससे कहूं,
कब्र की दीवारें जर्जर हो गई हैं अब तो आकर देख लो ।।-
वो कहता है फीवर है, तो चेक करा कहीं ये इश्क का बुखार तो नहीं,
तेरे दुश्मन जो हर पल तेरे मौत की दुवाएं करते हैं, कही वही यार तो नहीं,
जो रात को नींद सुबह भूख ना लगने की शिकायत ले कर आया है, कहीं प्यार तो नही,
शाकी, जो बीच मझ-धार मे छोड़ दे वापस आने के भरोसे से, कहीं... ऐसा परिवार तो नही,
थोड़े से तूफानों मे उजड़ गया बाशिंदा वो बस बाशिंदा था, तू घर फिर बना कि वो संसार तो नहीं,
और मैं आवाज देता हूं मेरे दोस्त मंजिल से पहले रास्तों मे कहीं, लौट आ,
पर लौटना भी सम्हाल कर, याद रहे अपना नही कोई, फिर आवाज देने वाला ही गद्दार तो नहीं ।।-
एक ख्वाब था जो सजा नही,
जो वो पास था कभी मिला नही,
एक गुलाब था जो जला दिया,
वो रुआब था जो मिटा दिया,
जो तनहा रहा तो ये सोचता, तुझे दगा ही दूं,
ऐ जिंदगी तुझे और क्या, मैं क्या ही दूं ।।-
पहले मार कर अब सजा मांगने आए हो ! जाओ माफ किया मुर्शिद,
की तुम भी तड़पोगे, फिर उन्हीं दरिंदों से वफा मांगने आए हो ।।-
मै अंधा हूं मुझको तो पहचान नही,
पर हे सखी क्या तुझको भी है ग्यान नही,
मेरे पीछे ऊनसे मिलने जाती है,
उनके ही मुह पर मुझे झुठलाती है,
चल बोल इतर क्या सूखेगा ?
जो लगा दाग क्या छुटेगा !
मै अंधा हूं.... मुझे पहचान नही,
इतर खुशबू संग सर्ट रंग का मुझको तो है ग्यान नही,
बस रात ढली है रातो की, अंधेरा अब भी बाकी है,
रे सखी बू आ रही जो कपड़ो से,
क्या वो ही तेरा साथी है !!....-
अपने और पराये ! फिर ऊपर से ये मुसीबत ? हाय,
तुम तो बचा लोगे उसको पर निरंजन उससे तुमको कौन बचाए ?-
यूं खिड़कियों पे खड़े हो कर रात का इंतजार ना किया करो,
तुम्हारे खूबसूरती के उजाले में घबरा जाएगी वो,
रात की रानी को देख रात सर कहां उठाएगी, रात को आने दो थोड़ा परदा तो गिरा लो,
और भी हैं दरिंदे अँधेरों के, गुलशन-ए-बहार मैं कुछ कहूं ? वो.... खैर जाने दो ।।-
बालों मे गुलाब, हाथों मे गुलाब,
फिर उपर से आवाज, हाय गुलाब,
अच्छा सुनो कत्ल कर-दो, अच्छा सुनो फिर कत्ल कर-दो,
कमबख्त चढ़ नही रही है शराब ।।-