जब तक दूसरों की मृत्यु में,
तुम अपनी मृत्यु न देख सको!
समझना तुम्हारी समझ बहुत कच्ची है!!
Osho-
परमात्मा तुम्हारे बिना भी परमात्मा ही है,
पर तुम बिना परमात्मा के कुछ भी नहीं...-
तुम मुझे हरा न सकोगे, क्योंकि मैं जीतना ही नहीं चाहता!
- Osho Rajneesh-
यह तुम्हारी लिखावट है जो तुम भोग रहे हो
कोई किस्मत नहीं, कोई भाग्य नहीं
किसी के भाग्य में कुछ नहीं लिखा है
भगवान ने एक-एक की खोपड़ी में लिखकर नहीं भेजा
जैसा तुम सोचते हो,
कोई बैठा है
और विधि चला रहा है
कोई विधाता नहीं -
तुम खुद विधाता हो
कोरा कागज तुम्हारे हाथ में है।...
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एक अति से अति सौम्य
और एक अत्यंतिक जलद
दोनों ही व्यक्तित्त्व सम्पूर्णतः
मौजूद मेरे अस्तित्व में ..
In caption please 😊-
रब्त-ए-जिस्म-ओ-जान हो जिन्हें उन्हें मुबारक़ हो जहाँ की रानाइयाँ
पैरहन-ए-जाँ से उठ सके , मुझे उस मुतमइन इश्क़ की तलाश है ।-
समाज अकेले व्यक्ति का शत्रु है-
अकेले में बगावत का स्वर शुरू हो जाता है
वह अपने मार्ग को खोजने लग जाता है
फिर वह भीड़ के पीछे नही चलता …
कितना ही बड़ा पद हो,
कितनी ही बड़ी प्रतिष्ठा हो,
वह भीड़ की पीठ के साथ नहीं चलता,
वह अपना रास्ता खुद बनाना शुरू करता है
वह स्वयं का हो जाता है, …
और स्वयं होने में बगावत है, क्रांति है, विद्रोह है,
इसीलिए कोई समाज या कोई भीड़
अकेले व्यक्ति को,"बर्दाश्त नहीं कर सकते।,".....
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लोग मंजिल की तलाश में हैं और मैं भटकाव चाहता हूं
तालाब सा ठहरना नहीं नदियों सा बहाव चाहता हूं
ना खौफ बेनाम रहने का ना चाहत किसी से अदब की
सांस चल रही काफी है ना जीतना कोई खिताब चाहता हूं
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