क्या थी मैं ग़लत
या वक़्त नहीं साथ मेरे,
क्या मुश्किल था
उनको समझना जज़्बात मेरे,
उम्रभर का साथ मांगा
मुझको मिले सवालात तेरे,
जग है हँस रहा
ऐसे हैं इस वक़्त हालात मेरे।
क्या थी मैं ग़लत
या वक़्त नहीं साथ मेरे।।
सुकून है मिलता
इस यारी में तेरे,
न छीन मुझसे इस रिश्ते को
रह ना पाऊंगी इस कयामत में,
तू चाहे मुझे या ना चाहे मर्ज़ी तेरी
तुझे चाहना है आदत मेरी,
तू था अंजान फरिश्ता
रहमत तेरे बस इनायत मेरे।
क्या थी मैं ग़लत
या वक़्त नहीं साथ मेरे।।।।
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