खामोशी से बिखरना है
शोर नहीं मचाना मैने-
Ek tamanna ye v hai, kash koi dekhne wala ho 🙂
हमेशा अवक़ात में रखने चाहिए
. अपनी ख्वाहिशों को,
. अपनी हसरतों को,
.अपनी ज़रूरतों को,
. अपने आप को।-
محبت آخر کیا ہے
محبت شاید کسی کو
ویسے ہی چاہنا ہےجیسا کہ فطرتاً وہ ہے
پھر کیوں ہم اس کی زندگی اپنے طریقے سے
کنٹرول کرنے لگ جاتے کیوں ہم چاہتے ہیں کہ
وہ وہی کرے جو ہمیں پسند ہو
اور ہمیں جو نہ پسند ہو وہ نہ کرے
کیوں ہم سکھانے لگتے ہیں کہ
یہ کرو وہ نہ کرو اِسے بات کرے اُسے نہ کرے
کیوں ہم محبت کے بدلے محبت نہ کر کے
ہم سامنے والے کو محبت کا درس دینے لگتے ہیں
کیوں ہم خاموشی سے محبت نہیں کر سکتے
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खफा है मेरा सुकूँ मुझसे
ज़माने की कोई शाज़िश होगी
कहीं तो कुछ चुभती है सीने में
हां दिल में बसी कोई तपिश होगी
आंखों का हाल बतलाता है जाना
किस रात में कितनी बारिश होगी
ये खस्ता हाल बिखरे बाल........
मुझे मेरे हाल पे छोड़ो यार नवाज़िश होगी
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چاہت میں اُس کی ۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔
خد کو شیریں ،اُس کو فرہاد کر دوں
بس میں ہو میرے اگر ۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔
خد کو برباد کر ،،،،،،اُسے آباد کر دوں
اُسکی مجبوریاں پریشانیاں دیکھ کر
دل چاہتا ہے اُسے اُسکے ہی لیئے آزاد کر دوں
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हँ उसे खोने से डरती हूँ मैं
ता हयात रोने से बहोत डरती हूँ मैं
मेरे हर सफ़र की मंज़िल है वो शख्श
खो कर उसे दर बदर होने से डरती हूँ मैं
दस्त ए मोहब्बत उसका सहारा है मेरा
उसकी तमाम तरअदाओं पे मरती हूँ मैं
लड़ना झगड़ना तो मा-अमूल है हमारा
हां उसकी ख़ामोशी से डरती हूँ मैं
मज़ूदगी उसकी एहसास ए तहफ्फूज़ है
उसे दूरी के तसव्वुर से ही बिखरती हूँ मैं
मुकम्मल पाती हूँ ख़ुद को साथ उसके
अब तो उसी के नाम पे जीती,मरती हूँ मैं
हँ उसे खोने से बहोत डरती हूँ मैं_____!!
हिज़्र के मौत मरने से बहोत डरती हूँ मैं___!!-
हंसी मौसम हलचल करती ठण्डी हवाएं
हम बीते लम्हो की कहानियाँ लिए बैठे हैं
सारे ही अपने हैं और बहुत ख़ास भी हैं
मगर हम हैं कि तन्हाईयाँ लिए बैठे हैं
उम्र का ये हिस्सा ए ख़ास वक्त है मेरी
जाने क्यों हम इतनी उदासियाँ लिए बैठे हैं
शाम ए तन्हाई हल्की बारिश मे भीगते लम्हें
और हम दिल ए बेजार में बेचैनियाँ लिए बैठे हैं-
कोइ क्या ही गमगीन करे मुझ को
मैंने खुद ही ख़ुद को सताया है
लोग पूछते हैं, वजह नम आँखों की
कैसे बताऊं ख़ुद ही ख़ुद को रुलाया है
कई क़यामत–ख़ेज़ रातों में
मैंने ख़ुद ही ख़ुद को समझाया है
कई अज़ीज़ लोगों के गिले शिकवे
अपने टुटे हुए दिल में दफनाया है
सजना संवरना खुश होना भी तर्क किया
देख कितनी बेदर्दी से मैंने दिल को जलाया है
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