अथाह अंबुधि मोह का, इधर तीर संसार
नौका सम हरि नाम है, उधर तीर भव पार
जपे तो भव को जाये
नहीं तो वो पछताये-
कौन,कहाँ, क्या सोचता, इसको छोड़ो मित्र
स्वयं सोच रखना सही, इससे जुड़ा चरित्र
त्याग भले सबही मगर, त्याग न स्वाभिमान
इक इससे ही है जुडी, दृढ़, निष्ठा पहचान-
साधु,स्वादु,में भेद पर,दीखत दोउ समान ।
एक राम में है रमा,दूजे की रस जान ।
साधु ने सब कुछ त्यागा ।
स्वादु है मित्र अभागा ।।
पाला, गर्मी, वृष्टि, में,करता श्रम घनघोर ।
कब सोता कब जागता,कब संध्या कब भोर ।।
फसल पर निर्भर जीवन ।
खेत उसके घर आँगन ।।
एक वस्तु का काव्य में,वर्णन जहाँ अनेक ।
शोभा करता दोगुनी,उत भूषण उल्लेख ।।
तरीका यह अपनाओ ।
काव्य को सभी सजाओ ।।-
गृहस्थ सार
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घर बाहर का मुखिया नर हो
और नारि घर भीतर जान
दोनों ही घर के संचालक
दोनों का ऊँचा है स्थान
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बात करे जब मुखिया पहला
दूजा सुने चित्त ले चाव
बात उचित अनुचित है जैसी
वैसा ही वह देय सुझाव
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बिना राय करना मत दोनों
चाहे कैसा भी हो काम
दोनों ही पहिये हैं घर के
एक दाहिना दूजा वाम
एक समझ से भली रही दो
दोनों का पद एक समान
दोनों ही आधार गृहस्थ के
रखो परस्पर दोनों मान
अगर बात मतभेद लिये हो
तो धर लेना इतना ध्यान
जिसका जो अधिकार क्षेत्र है
उसके ही कर रहे कमान
To be Continue....
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लिखने में रुचि हमारी, नहीं छंदों का ज्ञान
तलवारबाज कहलाते, हिला हिला कर म्यान-