Nawab
Kabab &
Aadab-
तू होगी रानी अपने पक्के महलो की
हम भी नवाब है अपने कच्चे घरों के-
पायल दिया,
पर कभी बांधा नहीं।
मजबूर इतना हुआ,
पर कभी मजदूर बना नहीं।
गुरुर संभाले,
मैं नवाब बन गया।
हां! लखनऊ से ही,
मैं शहंशाह बन गया।-
नजाकत,नफासत,खाने,कपड़े तक जिसकी पहचान है
वह है......हमारा प्यारा लखनऊ जो भारत की शान है-
Kehti h wo baal apne bigad ke rakho kya lazawab dikhte ho
Dekhu kya aaftab ki chamak ko tum to mere nawab dikhte ho.....!-
जिंदगी भर खुद_____________ को नवाब समझते रहे.
अहसास तब हुआ जब एक शख्स से प्यार मांगा फकीर की तरह-
चल रहा हूं आज कांटो पर, शायद कल गुलाब मिलेगा
कर रहा हूं इंतजार आज, शायद कल खिताब मिलेगा
इस जिंदगी की श्रृंख्ला मे ना जीत है ना हार है
जो देख रहा हूं ख़्वाब आज, शायद कल वो ख़्वाब मिलेगा-
ज़िक्र उठा है तो याद तेरी हर एक बात आई है,
फिर से नम हुई मेरी आँखें इसलिए की,
एक क़िताब तेरी यादों की मेरे हाथ आई है,
भूल आया था सब कुछ तेरे शहर में अपना,
कि ताज़ा करने को यादें फिर से वो बरसात आई है ।-
उलझ कर तेरी जुल्फों में यूं आबाद
हो जाऊं,
कि जैसे लखनऊ का मैं अमीनाबाद
हो जाऊं,
मै जमुना की तरह ताज़ को निहारूं
कब तक,
कोई मिले गंगा तो मैं इलाहाबाद
हो जाऊं-
तुम कहते हो कि तुम नवाब हो तो गलत कहते हो,
नवाब तो हम उसे ही कहते हैं
जो हमारे चप्पल मार के खेल में खुद को चप्पल खाने से बचा ले...
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