प्रेम की परिभाषा हो तुम,
मेरी मर्यादा हो तुम।
तुम्हें आंक भी न पाऊं,
ऐसी मेरी राधा हो तुम।-
'Rajat Mishra'
(रजत मिश्रा "चर्चित")
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Joined 30 October 2019
4 FEB 2022 AT 18:36
14 SEP 2021 AT 19:13
ख़्वाबों में आकर, ख़्वाब बदल देती है।
ख्यालों में आकर, ख़्याल बदल देती है।
जानी! वो मुझमें रहकर मुझे बदल देती है।
और तुम कहते हो, मुझे इश्क़ नहीं.....
इतनी हमदर्दी भी तो ठीक नहीं।-
20 AUG 2021 AT 19:36
जिसकी आंखों में इतनी बात है,
वो बोलती कम...
पर घूरती लाज़वाब है।
पर मैं सामने आया,
तो उसने पलकें झुका ली।
मुझको आंखों में भरकर,
उसने आंखें ही छिपा ली।-
31 JUL 2021 AT 19:30
यूं तो हर कोई मुझे मानना चाह रहा
पर दिल जिसे चाहता है,
वो किसी और से मान रहा।
गिला शिकवा दूर हो,
तो फ़िर आगे इज़हार भी हो।
अधूरी मोहब्बत में,
थोड़ा इकरार भी हो।
पर बात तो ऐसे बन्द है,
जैसे उसे जानते ही नहीं।
हम मिले तो नहीं,
पर क्या एक दूसरे को
पहचानते भी नहीं।-
24 MAY 2021 AT 18:54
जब ज़िन्दगी सिखाती है न,
तो बहुत रुलाती है।
तो वक़्त रहते सीख लो,
या हंसते-हंसते मान लो।
क्योंकि ये काल चक्र काल का,
अभिमान छीने स्वाभिमान का।-