दूसरों की बुराइयां तो बहुत निकालते हो तुम ,
चलो आज अपनी अच्छाइयां भी गिनवा दो ।-
ग़ज़ल:
कुछ भी तेरे बाद नहीं है,
ये तक तुझको याद नहीं हैं
इश्क़ मकाँ है गिरने वाला,
जज़्बे की बुनियाद नहीं है,
तेरा होना हक़ है मेरा,
ये कोई फ़रियाद नहीं है,
दिल जंगल तो बंजर है अब,
गोशा इक आबाद नहीं है,
एक जहाँ में कितनी खुशियाँ,
लेकिन कोई शाद नहीं है,
शेर कहा करता था मैं भी,
पर अब कुछ भी याद नहीं है,
-
" नज़र की बात है...... "
ये तो नज़र नज़र की बात है,
कभी इधर तो कभी उधर की बात है,
ख़ामोशियों से गुज़र कर निकली,
ये उम्र की उस शज़र की बात है,
हाथ पकड़ो साथ चलो तो कुछ वक़्त,
मंज़िल से अलहदा ये उस सफ़र की बात है,
मरहम से वाकिफ़ होगे अब तलक तुम शायद,
मगर ये तो उनके ज़ख्मों की बात है,
कहानी, फलसफों पढ़े है जिनके तुमने हर-सू,
ये उस शायर की मरहूम क़लम की बात है,
अब अगर आ चुके हो आख़िर तक मुसाफ़िर,
तो यहीं ठहरो कि यहीं हमारी पहली मुलाक़ात है...!!-
" मज़ाकिया इश्क़..."
ज़िन्दगी दौर बदलती गई ज़ख्म दर ज़ख्म,
बस बेरुखी-ए-मोहब्बत के घाव ताज़ा रहे...!!-
विरासत में नहीं मिला है मुझे ये हुनर लिखने का,
लोगो ने तारीफें कर कर के ही शायर बना दिया।-
..............मुसाफ़िर हूँ मैं...........
मुसाफ़िर हूँ मैं,
थकना लाज़मी है |
पल दो पल रुक कर
फिर बढ़ना लाज़मी है |
मैं कायर नहीं
जो हार मान लूँ,
मेरा हार कर भी जीतना,
ऐ ख़ुदा! लाज़मी है |
हँस कर मिलूं फिर,
ये मैं क्या कहूं!
सफ़र में हूँ मैं,
गुम होना लाज़मी है |
मुसाफ़िर हूँ मैं,
अब ठहरना नहीं है,
हर कदम आगे बढ़ना,
ऐ ख़ुदा! लाज़मी है |-
ज़िन्दगी ने हमें कुछ इस तरह से तराशा है
किसी मोड़ पर खुशियां,
तो किसी मोड़ पर धोखा है!
बढ़ता चला जा ओ मुसाफ़िर, तुझे किसने रोका है?
न जाने कौनसा लम्हा आखिरी हो
और कौनसा आखिरी मौका है!-
ज़िन्दगी में सब शब्दों का खेल है जनाब,
जो इस्तेमाल सीख गया वो जीत गया।
जो नहीं सीखा वो हार गया।-
" मालूम है मुझकों ..... "
है ग़म मुझें भी तेरे बिख़र जाने का,
मगर है क्या ये जरूरी, मालूम नही मुझकों,
ना बचा हूँ ख़ुद में मैं भी बिल्कुल मामूली सा,
मगर कुछ बचा भी है तुझसा, मालूम नही मुझकों,
साँसें रेंगती है सिर्फ़ जिस्म जिंदा रखने को,
मगर रूह बाक़ी भी है मेरी, मालूम नही मुझकों,
हर तरफ़ नज़र आता है इश्क़ तेरे हिस्से का,
मगर ख़ाली मेरा हिस्सा भी है, मालूम नही मुझकों,
आँसू गिरते है आँखों से तेरा ख़्वाब जाने तक को,
मगर दर्द अब भी ताज़ा है मेरा, मालूम नही मुझकों,
खो चुके हो वक़्त के साथ हर तरह के रिश्ते को,
मगर उस पार तुम मेरे हो, मालूम है मुझकों......!!-
" मुसव्विर ..... "
वो मुसव्विर मेरा मुझमें और गहरा उतरता रहा,
रंग-ए-बे-लौस से शख़्सियत मेरी हर लम्हा भरता रहा..!!-