हर मुन्तज़र मुक़म्मल हो जाए, ये जिंदगी कैसी..!
ये जिंदगी एक शतरंज का खेल है ज़नाब...
यहाँ शह और मात नही तो, बादशाह की वजूद कैसी..!-
Mai....mai Muntazir hunn
Mai...Muntazir hunn
Mujhe wakt ka khauf dikhana nai
Aur jise tum dhamka rahe ho...
Auurrr jise tum dhamka rahe ho
Sambhal jao, Muntazar hai wo mera
Humare aate hi bhaag jaane ka nai-
सुखन तराजी तुम करो
और ज़ुबा दराज हमें कहा जाए
वादा खिलाफी तुम करो
और बेवफा कजाब हमें कहा जाए-
Ajeeb o gareeb sa manzar yaha dekha
ye duniya hai, gamgeen sa shajar yaha dekha
Khushi ke liye logo ko muntazar yaha dekha
gamgeen se logo ka khush mijaz hamsafar yaha dekha.-
Aasaishon ke jashn me sabhi magan rahe
Ek hum hi badnaseeb pas e anjuman rahe
Insaaniyat ki daal do chadar gareeb par
Kab tak wafa ki laash begaur o kafan rahe
Taarif ki faseil par kiska diya jalaye ?
Iqbal o Meer jeise kaha ehl e fan rahe
Muntazar na ek phool bhi khushi ka mil saka
Kehne ko to unke dil me hum mushk e khutan rahe-
इस से पहले ज़िन्दगी में और भी दुःख था
तुम मजीद इज़ाफ़ा कर गए
इस से पहले ज़िन्दगी में और भी दर्द था
तुम मजीद इजारा कर गए-
आंखें इस कदर
मुंताज़र है तुम्हारी
कोई और चेहरा इनको
भाता ही नहीं।
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तारिक रातों में आते हो तुम,
दिन के उजालो में आओ तो कोई बात हो!
वीरान गारों में आते हो तुम,
भरे बाजारों में आओ तो कोई बात हो!
कलिम को तुर पर तजल्ली दिखाते हो तुम,
दिखा के, दिल को यूं ना जलाओ तो कोई बात हो!
मेहबूब को अर्श पर बुलाते हो तुम,
बुला के, नुर के पर्दे हटाओ तो कोई बात हो!
हुदुद ए हरिम से आगे बढ़ाते हो तुम,
फिर अदब की इंतेहा भी मिटाओ तो कोई बात हो!
मय-कदे में सबको पिलाते हो तुम,
हम तिश्ना लबो को भी पिलाओ तो कोई बात हो!
दैर ओ हरम में अपने बुत बनाते हो तुम,
मुंतज़र इक सनम हमारा भी बनाओ तो कोई बात हो।।-