"पापा"🩵
क्या तारीफ़ करू मैं
क्या बोलू मैं
बोलने को लफ्ज़ नही है पास
कहने को कुछ नही है खास,
लेकिन कुछ तो कहना चाहते है
कुछ समझाना चाहते है,
इस लफ़्ज़ ए पापा पे,
"मोहब्बत" की बारिश करना चाहते है..
इन पे कुछ क्या लिखुं
लफ़्ज़ों के भंडार तो है ही पास,
फिर भी ना जाने क्यों,
लफ़्ज़ आने को तैयार नहीं है,
लफ़्ज़ बोलने को तैयार नहीं है,
ख़ामोशी से आंखें नम करके,
लफ़्ज़ भी खिड़की से झांक रहे है,
और कह रहे है,
इतने प्यारे पापा पे क्यों कर मैं आऊ
जो खुद ही बहुत प्यारा है ,
उसके लिए मैं कौन से लफ़्ज़ बन जाऊं ।
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