बह्र-- 2122 1212 22
इश्क़ है मुझको इसकी राहत से
शायरी कर रही हूँ मुद्दत से।
याद आते हो हर घड़ी मुझको
दिल तड़पता रहा ये शिद्दत से।
सोचकर तुझको कहती हूँ जो शे'र
देखती है ग़ज़ल भी हैरत से।
तुम कभी शाम को चले जाओ
बैठ जाते हैं हम भी फुर्सत से।
हाल मेरा भी तुझ से मिलता है
हूँ मैं अनजान अपनी हालत से।
ठेस लग जाये ऐसा मत बोलो
तुम हो वाकिफ़ "रिया" की आदत से।-
ग़म रहा जब तक कि दम में दम रहा
दिल के जाने का निहायत ग़म रहा
मेरे रोने की हक़ीक़त जिस में थी
एक मुद्दत तक वो काग़ज़ नम रहा
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माना हम मुद्दत बाद मिले हैं...
पर तुझसे मोहब्बत आज भी है...
मेरे दिल का एक कोना...
तेरे नाम से धड़कता आज भी है...-
आज मुद्दतों बाद ही सही...
मुझे मेरी चांँद का दीदार तो हुआ...
चलो थोड़ी देर से ही सही...
उन्हें मुझसे प्यार तो हुआ...-
आज मुद्दत बाद ही सही...
मुझे उसका दीदार तो हो पाया...
पर उफ्फ! मेरी बदकिस्मती तो देखो...
मैंने उसको उसके जीवन साथी के साथ पाया...-
माना मिले मुद्दत हुआ...
पर तू याद आज भी है...
थोड़ी धुंधली ही सही...
मगर इन आंँखों में...
तेरी तस्वीर आज भी है...-
आज मुद्दत बाद...
मैंने उसे याद किया...
दिल की बंद गलियों को...
फिर से आबाद किया...
उसने मुझे नहीं...
मैंने उसे नहीं...
यह मोहब्बत है...
जिसने हम दोनों...
को बर्बाद किया....-
सिर्फ सांसों की डोर ही जारी है साहब,,,
वरना मुद्दत हो गई है हमें गुज़रे हुए.....!!!!!!-
आज फिर पूरा दिन...
तेरी यादों को दे दिया...
तेरा संदेशा ना आया...
और शाम भी ढल गया...
मुझे मालूम है की एक...
मुद्दत से बेवफा है तू...
फिर क्यों इस बार भी...
तुझ पर भरोसा कर लिया...-
चुप हैं हम मुद्दतो से कि शहर में कहीं शोर न मच जाये,
मुँह खुला अगर इस बार यहाँ तो तबाही कहीं और न मच जाये ।-