जब मंजिल कठिन चुनी है
तो रास्ते से डरना क्यूँ भला
जब चलने की ही ठानी है
तो छालों से डरना क्यूँ भला
अगर चाहत है कल हँसने की
तो आज रोने से डरना क्यूँ भला
हाँ दुनिया को भले हो शक़ तेरी काबिलियत पर
पर जब तेरे माँ-पा हैं तेरे साथ तो दूसरों की सोचना क्यूँ भला....
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ज़िन्दगी नुमा इस पेड़ पर
सारे ही मौसम आते हैं
पतझड़ का भी बहार का भी
फर्क बस इतना ही है
कुछ मुर्झा जाते है फिर कभी न खिलने को
और कुछ मुर्झा के भी पुनर्जीवित होते है
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If we focus our attention on removing the negativity, then we will remain entangled in it, better than that if we keep focus on our goal then the negativity will be removed itself....
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पराश्रयी अर्थात दूसरों पर निर्भर रहने वाले व्यक्ति की प्रतिभा लुप्त हो जाती है l
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तू ही बता किश्मत मुझे ले किधर जारी है।
मेरे संग माँ की दुआओं का असर जारी है।।
मै तो मुसाफ़िर हूँ चल रहा हूँ धीरे-धीरे।
मंजिल तो पता नहीं पर सफ़र जारी है।।-
"Kisi chij ko hasil karna hai to pareshaniyo ka samna karo,Taqlif me himmat Paida karo, himaat me junoon,,junoon me sabar,,sabar par bharosa aur bharose par aap ka Yakin,,
_danishjaved@-
*लक्ष्य कैसा भी हो*
असंभव लक्ष्य को संभव करना इनको आता है
कितनी ही बार और कब चतुराई से खेल का रूख बदलना है
ये इनका अनुभव बताता है
नाम मे कुछ नही रखा है लेकिन नाम को बडा कैसे बनाना है
ये इनकी कहानी जानकर ही समझ आता है-