कई कहानियाँ अधूरी पड़ी हैं,
डायरियों में बन्द,
अलमारियों में कैद।
उन्हें पूरा करने की हिम्मत नहीं है,
या शायद शब्द नहीं हैं।
वह भी सोचती होंगी..
उनका हिसाब किताब कब होगा?
पर यूं तो लगता है कभी कभी,
हर कहानी का अन्त होना ज़रुरी तो नहीं।
कुछ अफ़साने अधूरे ही अच्छे होते हैं,
बिना रफा-दफा बिना बहि-खाता ही सही होते हैं..!!
-
Jamana jidha bhi banni par tere jeha baimaan nahi banna...!!
Ve tu kar lakh aitbaar apni jaan da ....!!
Teri jaan nu bhi mere jeha aayushmaan nahi banna...!!!-
अगर मैं हस दूँ ,
तो उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ जाती है,
कुछ इस कदर वो मुझे अपना होने का एहसास कराती है...-
दिमाग़ में यादों को कैद कर रखा हैं
दिल में जज़्बातों को समेट कर रखा हैं
कभी फुरसत मिले तो आना मेरे पास
कई राज़ आज़ भी दिल के किसी कोने में दफ़न कर रखा हैं
हर बात जुबां से कह नहीं पाती हूं
कभी हो सकें तो नज़रों में झांक कर समझ लेना
कई राज़ ऐसे भी हैं इस दिल में जिसे बिखेरा हैं कोरे काज़ो में हमने
अगर हो गई देर तुम्हें आने में तो कोई नहीं
एक उम्मीद जिंदा रहेगी दफ़न होने से पहले
पढ़ लेना मेरी डायरी के पन्नो में लिखें मेरे अधूरे अल्फाजों के जज़्बातो को...-
जब हुए हम उदास थे,
क्योंकि तब तुम मेरे साथ थे,
और हर पल रहते मेरे पास थे..-
तुमसे बेहतर तो मेरी डायरी है ,
बिना किसी उलझन के
मैं उससे बातें तो कर लेती हूं।-
Ek subah....
Suraj ke nikalne se duniyan ka andhkar mit jata hai...
Jeene ke liye fir se ek aur naya din mil jata hai...
Lagja e-musafir apne sapno ko pura krne main...
Yahi wo din hai jo tujhe suraj ki traha chamka sakta hai....-