'मणिकर्णिका का घाट यही है'
(अनुशीर्षक में पढ़ें)-
शाम होते ही आसमां पे नज़र
नुकती कर के बैठ गई।
किनारों पे जिस कदर थकी हुई ये
कश्ती आकर बैठ गई।
यूं तो लाज रखता है दुपट्टों से
मगर चांद की ठंडक मै
आज ज़रा ओर करीब आकर बैठ गई।
हया से पलके झुकी थी या कोई
इशारा था, चाय जूठी कर ग्लास
बगल में रख कर बैठ गई।
मुझे नहीं मालूम मतलब ए जिस्म
मणिकर्णिका सी सुकून लिए
वो तो बिंदी लगा कर बैठ गई।-
Assi🍀
man Manikarnika par ja bhatka hai
Kasturi nahi, sukoon ki talash mai.
Jane kab ye safar Dakshineswar se hokar,
VT par khatm ho gaya, magar yaad hai.
Ek shaam ,assi ke naam kaha tha tumne
or suno, khair jane do, "intezar rahega".-
मैं
क्या कहूँ,
हूँ कैसे जीती
श्मशान
की बनी
मैं चिता
जो चाहते,
वहीं जलाते हैं
फिर अस्थि
भस्म बहाते हैं
झूठे अश्कों
संग बहा देना।।
गर आऊँ..!-
Manikarnika
Jab raahgiron ke mehfilon ki
Mohtaaj na hongi khudariyan,
Jab khairat ke bojh se thak
Chalegi ye zindagi ,Tab kanhi
Banaras akhiri safar hoge tum
mera or manikarnika manzil.-
शाम कुछ यूं गुजरती थी साथ उनके
गले मिलकर सब कस्तूरी भर लाए हो जैसे।
सुकून की बाते तो बहुत किया करते थे, पर
नींद का ही सौदा मगर कर आए हो जैसे।
वो अपने पास बैठा कर निहारती थी इस कदर
पांव धो कर किसी ने हमसफ़र बैठाया हो जैसे।
करती रही चांद की बाते तमाम रात
शायद तारो से कोई उसको रंजिशे हो जैसे।।
चेहरे से ज़ुल्फ हटा कान के पीछे कर देते थे हम भी
उफ्फ वो जानती नहीं नज़र लग जाती है कैसे।
कहती थी एक ही कुल्हड़ से चाय पियो करो
हद इश्क़ निभाने का शौक़ चढ़ा हो जैसे।
खैर मना लेते उसको गर बेवजह ना रूठता वो
मार्च के महीनों को हमसे रूठने की आदत है जैसे.
अब पहले उसके माथे को चूमना है
फिर उसके बाद उससे जुदा हो जाना है मुझे
किसी का सब कुछ छीन जाना हो जैसे।
फिर वही शाम है वही अधूरी ख्वाहिश का मसला है
मणिकर्णिका के बगैर बनारस हो जैसे।-
मेरा मन, मेरे ख़्याल का कोई ख़्याल नहीं करता,
मैं क्यूँ मौत चाहती हूँ, वो कोई सवाल नहीं करता,
और मैं जो ये टूट कर भी जी रही हूँ हँसकर
ये दुनियां का दस्तूर है, मेरा दिल कोई कमाल नहीं करता.!!-
कश्ती के मीज़ाजी किनारे, तर ख्वाहिश डुबकी, मशक्कत रोजमर्रा पतवारें, गुम मन की गलि बनारस,और पतंग ए अस्सी,
इन सब से परे तुम सुकून मुझे मणिकर्णिका सी लगी!-
शौर्य और पराक्रम से इतिहास में नाम रोशन किया,
शास्त्रों के साथ शस्त्र विद्या का ज्ञान बचपन में ही लिया।
पति व पुत्र की मृत्यु के बावजूद अंग्रेजों से खूब बहादुरी से लड़ी,
मणिकार्णिका(मनु) वाराणसी में पैदा हुई।
महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है रानी लक्ष्मी बाई,
भारतीय महिलाओं के समक्ष अपने जीवन काल में आदर्श स्थापित कर विदा हुई।-